प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा 5 जून पर्यावरण दिवस पर विशेष कविता “नदी की मनोव्यथा “। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 40 ☆ पर्यावरण दिवस विशेष – नदी की मनोव्यथा ☆
जो मीठा पावन जल देकर हमको सुस्वस्थ बनाती है
जिसकी घाटी और जलधारा हम सबके मन को भाती है
तीर्थ क्षेत्र जिसके तट पर हैं जिनकी होती है पूजा
वही नर्मदा माँ दुखिया सी अपनी व्यथा सुनाती है
पूजा तो करते सब मेरी पर उच्छिष्ट बहाते हैं
कचरा पोलीथीन फेंक जाते हैं जो भी आते हैं
मैल मलिनता भरते मुझमें जो भी रोज नहाते हैं
गंदे परनाले नगरों के मुझमें ही डाले जाते हैं
जरा निहारो पड़ी गन्दगी मेरे तट और घाटों में
सैर सपाटे वाले यात्री ! खुश न रहो बस चाटों में
मन के श्रद्धा भाव तुम्हारे प्रकट नहीं व्यवहारों में
समाचार सब छपते रहते आये दिन अखबारों में
ऐसे इस वसुधा को पावन मैं कैसे कर पाउँगी ?
पापनाशिनी शक्ति गवाँकर विष से खुद मर जाउंगी
मेरी जो छबि बसी हुई है जन मानस के भावों में
धूमिल वह होती जाती अब दूर दूर तक गांवों में
प्रिय भारत में जहाँ कहीं भी दिखते साधक सन्यासी
वे मुझमें डुबकी, तर्पण,पूजन,आरति के हैं अभिलाषी
तुम सब मुझको माँ कहते, तो माँ को बेटों सा प्यार करो
घृणित मलिनता से उबार तुम मेरे सब दुख दर्द हरो
सही धर्म का अर्थ समझ यदि सब हितकर व्यवहार करें
तो न किसी को कठिनाई हो, कहीं न जलचर जीव मरें
छुद्र स्वार्थ नासमझी से जब आपस में टकराते हैं
इस धरती पर तभी अचानक विकट बवण्डर आते हैं
प्रकृति आज है घायल, मानव की बढ़ती मनमानी से
लोग कर रहे अहित स्वतः का, अपनी ही नादानी से
ले निर्मल जल, निज क्षमता भर अगर न मैं बह पाउंगी
नगर गांव, कृषि वन, जन मन को क्या खुश रख पाउँगी ?
प्रकृति चक्र की समझ क्रियायें,परिपोषक व्यवहार करो
बुरी आदतें बदलो अपनी, जननी का श्रंगार करो
बाँटो सबको प्यार, स्वच्छता रखो, प्रकृति उद्धार करो
जहाँ जहाँ भी विकृति बढ़ी है बढ़कर वहाँ सुधार करो
गंगा यमुना सब नदियों की मुझ सी राम कहानी है
इसीलिये हो रहा कठिन अब मिलना सबको पानी है
समझो जीवन की परिभाषा, छोड़ो मन की नादानी
सबके मन से हटे प्रदूषण, तो हों सुखी सभी प्राणी !!
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈