सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा
(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर (सिस्टम्स) महामेट्रो, पुणे हैं। आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी कविता “हिस्सा”। )
साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 7
☆ हिस्सा ☆
तुमने
कर दिया है बंद मुझे
किसी सूने से लफ्ज़ की तरह
जो छुपा हुआ है
किसी ठहरी सी नज़्म में,
किसी किताब के मौन सफ्हे पर!
खामोश सी मैं
एक टक देख रही हूँ
तुम्हारी आँखों के चढ़ते-उड़ते रंगों को
और निहार रही हूँ
तुम्हारे होठों की रंगत को,
तुम्हारे माथे की चौड़ाई को
और तुम्हारे जुल्फों के घनेरेपन को!
सुनो,
मैं तुम्हारी मुहब्बत का
एक छोटा सा हिस्सा हूँ,
तुम ही हो मुझे बनाने वाले
और मेरी पहचान भी तभी तक है
जब तक तुम मुझे चाहो;
वरना मिटाने में तो
बस एक लम्हा लगता है!
© नीलम सक्सेना चंद्रा
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