सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा
(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “आब-ए-मुहब्बत”। )
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☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 84 ☆
☆ आब-ए-मुहब्बत ☆
शायद मैं एक शजर हूँ
और मेरी जड़ें…
वो भी बहुत मज़बूत हैं,
और देती रहती हैं मुझे आब-ए-हयात…
पनपते ही रहते हैं मुझपर
कई हज़ार गुल
जो बिखेरते हैं दिलकश सी खुश्बू…
पर कभी-कभी,
लाज़मी है मेरा भी मुरझा जाना…
यह उम्मीद है कि
रोज़ ख्वाब में चली आती है,
कि तुम किसी अब्र से आओगे
और बरसाओगे इतनी आब-ए-मुहब्बत
कि मैं खिल उठूँगी
किसी मुस्कान सी!
© नीलम सक्सेना चंद्रा
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈