डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं   “भावना के दोहे। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 94 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे ☆

हृदय प्रफुल्लित हो गया,

दर्शन करते देव।

सावन में अभिषेक से,

हों प्रसन्न महदेव।।

 

धानी रंग पुकारता,

आया सावन झूम।

हरियाली छाने लगी,

लता धरा को चूम।।

 

फूल आज कुछ कह रहा,

कर अतीत  को याद।

निज स्पंदन से आज तुम,

करो  मुझे आबाद।।

 

खुशबू जिनमें है नही,

कागज के हैं फूल।

चंचरीक बनकर नहीं ,

करो प्यार की भूल।।

 

सूख गए हो आज तुम,

खिलते हुए गुलाब।

याद तुम्हारी आ गई,

जबसे मिली किताब।।

 

तनहाई डसने लगी,

बातें करो जनाब।

हो प्रतीक  मुस्कान के,

खिलते हुए गुलाब।।

 

तितली भंवरे कर रहे,

फूलों का रसपान।

महक नहीं है फूल में,

कागज भी  बेजान।।

 

मन के रेगिस्तान में,

खिलते फूल हजार।

होते ही मन बावरा , 

खोले पंख पसार।।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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Shyam Khaparde

सुंदर दोहे बधाई

Kamna

Wah