डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’

(डॉ विजय तिवारी ‘ किसलय’ जी संस्कारधानी जबलपुर में साहित्य की बहुआयामी विधाओं में सृजनरत हैं । आपकी छंदबद्ध कवितायें, गजलें, नवगीत, छंदमुक्त कवितायें, क्षणिकाएँ, दोहे, कहानियाँ, लघुकथाएँ, समीक्षायें, आलेख, संस्कृति, कला, पर्यटन, इतिहास विषयक सृजन सामग्री यत्र-तत्र प्रकाशित/प्रसारित होती रहती है। आप साहित्य की लगभग सभी विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी सर्वप्रिय विधा काव्य लेखन है। आप कई विशिष्ट पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं।  आप सर्वोत्कृट साहित्यकार ही नहीं अपितु निःस्वार्थ समाजसेवी भी हैं।आप प्रति शुक्रवार साहित्यिक स्तम्भ – किसलय की कलम से आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका  एक अत्यंत ज्ञानवर्धक, ऐतिहासिक एवं आध्यात्मिक आलेख  हिन्दु धर्म के अस्तित्व एवं स्वाभिमान की बात ”.)

☆ किसलय की कलम से # 47 ☆

☆ हिन्दु धर्म के अस्तित्व एवं स्वाभिमान की बात ☆

सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग एवं कलयुग की आवृत्तियों की श्रंखला में अक्सर हमें सतयुग के समुद्र मंथन वाले विष्णु, त्रेता के समुद्र पर सेतु बनवाने वाले राम और द्वापर के समुद्र के अंदर निर्मित द्वारिका वाले कृष्ण के वृतांत ही सुनने पढ़ने मिलते हैं। इन सभी को, देवों के देव महादेव को या शक्तिरूपा माँ दुर्गा को आस्था और विश्वास सहित अपना आराध्य मानने वाले लोग पीढ़ी दर पीढ़ी सनातन धर्मियों के रूप में इस पृथ्वी पर जीवन जीते आ रहे हैं। वर्तमान में यही सनातन धर्म हिंदू धर्म के रूप में अपनी पहचान बना चुका है। आज हमारे धर्मशास्त्रों में वेद, पुराण, उपनिषद, महाभारत, रामायण, रामचरित मानस जैसे महान ग्रंथ एवं वृहद साहित्य उपलब्ध है। सप्रमाण इनकी प्राचीनता को परखा जा सकता है और हमारे हिन्दु धर्म को विश्व का प्राचीनतम धर्म कहने पर किसी को भी लेश मात्र संशय नहीं है।

देवासुर संग्राम, राम-रावण युद्ध महाभारत धर्मयुद्ध के साथ ही जाने कितनी उथल-पुथल हमारे समाज में हुई लेकिन आज भी हिन्दु धर्म और इसके अनुयायियों में कमी नहीं आई। हूण, शक, मुगल और अंग्रेजों द्वारा किये गए दमन, अत्याचार और उनके आधिपत्य के बावजूद हम हिन्दु आज विश्व के समक्ष सीना तानकर खड़े हैं। सभी विदेशी शासकों ने हिन्दु धर्म के अस्तित्व को मिटाने हेतु क्या नहीं किया, यह सभी को विदित है। साम-दाम-दंड-भेद की नीति से धर्मांतरण कराना आज भी जारी है।

आज जब हिन्दु धर्मावलम्बी दूसरे धर्मों को अपना लेते हैं, तब यह बताना भी जरूरी है कि हिन्दु धर्म में अन्य धर्मों की तुलना में कोई कमियाँ नहीं हैं बल्कि हिन्दु धर्म की उदारता, तरलता एवं शांतिप्रियता की आड़ में यह धर्मांतरण का खेल खेला जा रहा है। यह बात भी खुले मन से कही जा सकती है कि हमारी आर्थिक व सामाजिक व्यवस्थाओं में कमी भी इसका सबसे बड़ा कारण है। आर्थिक रूप से परेशान और सामाजिकता के दायरे में स्वयं को हीन समझने वाला इंसान भी अर्थ और सम्मान पाने भ्रम पाल बैठता है। यही भ्रम उसे धर्मांतरण हेतु प्रेरित करता है। इसके पश्चात जब हिन्दु धर्म तथा समाज का उसे यथोचित संभल नहीं मिलता तब वह अंत में टीस लिए न चाहते हुए भी धर्मांतरण कर लेता है। इसके अतिरिक्त अन्य तरह-तरह के प्रलोभन भी धर्मांतरण में सहायक बनते हैं। कभी-कभी ऐसे कारण भी हो सकते हैं जो उक्त श्रेणी में नहीं आते।

ऐसा ही धर्मांतरण का एक किस्सा है कि एक महाशय जिनका नाम ‘छेदी’ था। उसे लोग छेदी-छेदी पुकार कर चिढ़ाया करते थे। मानसिक रूप से परेशान श्री छेदी ने सोचा कि मैं क्यों न अपना धर्म बदल लूँ जिससे मेरा नाम भी बदल जाएगा। बस इतनी सी बात पर उसने ईसाई बनने की ठान ली। धर्म परिवर्तन का फंक्शन आयोजित हुआ और सभी के बीच चर्च के फादर ने उसका नामकरण करते हुए कहा- आज से तुम ‘मिस्टर होल’ के नाम से जाने जाओगे। फिर क्या था, सब लोग उसे मिस्टर होल – मिस्टर होल कहने लगे। अब उसे और बुरा लगने लगा। ऐसी परिस्थिति दुबारा निर्मित होने पर इसी नाम के चक्कर में वह पुनः धर्मांतरण हेतु इस्लाम धर्म कबूल करने पहुँच गया। अति तो तब हुई जब मौलवी साहब ने उसका नामकरण “सुराख अली” के रूप में किया। इतना सब कुछ करने के बाद उसका माथा ठनका की धर्मांतरण इस समस्या का हल नहीं है। निराकरण उसकी एवं उसके धर्मावलंबियों की सोच पर भी निर्भर करता है।

आशय यह है कि धर्मांतरण के लिए केवल वह व्यक्ति उत्तरदायी नहीं होता, उसका धर्मावलम्बी समाज भी उत्तरदायी होता है क्योंकि उसका धर्म उसे वह सब नहीं दे पाता जो दूसरे धर्म के लोग और दूसरे धर्म-प्रचारक अपने धर्म में शामिल करने हेतु थाली सजाकर उसको देने तैयार रहते हैं।

आज हिन्दु विश्व में अरबों की संख्या में हैं। जब संख्या बड़ी होती है तब सभी असतर्क, निश्चिंत और बहुसंख्यक होने के भ्रम में जीते रहते हैं। गैर धर्म के लोग हिन्दु धर्म में सेंध लगाते रहते हैं लेकिन हम उसे आज भी अनदेखा और अनसुना करते रहते हैं, जिसका ही परिणाम है कि लोग हमें गाय जैसा सीधा समझकर हमें परेशान करने से नहीं चूकते।

बस इसीलिए मैं गंभीरता पूर्वक यह बात पूछना चाहता हूँ कि सदियों, दशकों, वर्षों या यूँ कहें कि आए दिन हिन्दु धर्म, हिन्दु धर्मग्रंथों, हिन्दु देवी-देवताओं, हिन्दुओं के तीज-त्यौहार, पूजा-अर्चना और परंपराओं का अपमान करना और माखौल उड़ाना कितना उचित है? वे आपके दिए हुए प्रसाद का आदर नहीं करते, न ही खाते। आपके देवी-देवताओं और धार्मिक ग्रंथों के प्रति उनकी कोई श्रद्धा नहीं होती। हमारी उदारता देखिए कि हम उनके धार्मिक स्थलों और मजहबी कार्यक्रमों में टोपी पहन कर जाना धर्म-विरोधी नहीं मानते लेकिन वे हमारे धार्मिक कार्यक्रमों में तिलक लगाकर आने और शामिल होने से परहेज करते हैं। हम मंदिर, मस्जिद और गिरजाघरों को ईश्वर का घर मानते हैं लेकिन हमारे मंदिरों में जाने में, हमारे धार्मिक कार्यक्रमों में शामिल होने में इतर धर्मियों को इतनी घृणा, इतनी नफरत और इतना परहेज क्यों रहता है?

हमारे बहुत से इतर धर्मी मित्र हैं। उनसे हमारी सकारात्मक चर्चाएँ होती हैं। उनका यही मानना है कि हर धर्म में कुछ कट्टरपंथी व विघ्नसंतोषी होते हैं। उन्हें कोई नहीं सुधार सकता। आशय यही है कि कुछ ही लोग होते हैं जो फिजा को जहरीला बनाने से नहीं चूकते।

लगातार इतर धर्मावलंबियों के धर्मगुरुओं एवं प्रचारकों द्वारा लगातार अपने मजहब के अन्दर हिन्दु धर्म के प्रति जहर घोला जा रहा है। यही कारण है कि एक सामान्य से हिन्दु आदमी की भी समझ में आने लगा है कि ये सुनियोजित चलाई जा रहीं गतिविधियाँ देश और समाज को गलत दिशा में मोड़ने का प्रयास है। यदि अब आगे और शांति मार्ग अपनाया गया अथवा इसका प्रत्युत्तर नहीं दिया गया तो पानी सिर के ऊपर चल जाएगा। यह प्रतिशोध की भावना नहीं है। यह अपने धर्म की रक्षा का प्रश्न है। यह हमारे हिन्दु धर्म के अस्तित्व एवं स्वाभिमान की बात है। मैं न सही, आप न सही लेकिन तीसरे, चौथे और आखिरी इंसान तक क्या गांधीगिरी का पाठ पढ़ाया जा सकता है? आज जब कुछ हिन्दु, हिन्दु धार्मिक संगठन एवं संस्थाएँ इतर धर्मों के कटाक्ष व अनर्गल प्रलापों का प्रत्युत्तर देने लगें तो बौखलाहट क्यों?

इनके जो दृष्टिकोण जायज हैं, वहीं दृष्टिकोण हिंदुओं के लिए उचित क्यों नहीं? हम यह कहने से कभी नहीं चूकते कि हम उदारवादी हैं। हम शांतिप्रिय हैं। हम सर्वधर्म समभाव की विचारधारा वाले हैं, तो इसका यह आशय कदापि नहीं लगा लेना चाहिए कि वे हमारे घर, हमारे परिवार और हमारे समाज के अस्तित्व को ही समाप्त करने की कोशिश करें। आज जो यत्र-तत्र उक्त आक्रोश ,उत्तेजक वक्तव्य, धार्मिक प्रदर्शन एवं शिकायतें सामने आ रही हैं, ये सब हमारे प्रतिरोध न करने का ही प्रतिफल समझ में आता है। भारत में रहने वाले हर नागरिक को यह समझना ही होगा कि उसे संविधान के दायरे में रहना होगा। धर्म निरपेक्षता का पाठ सीखना होगा। मौलवियों, पादरियों एवं मठाधीशों की संकीर्ण, उत्तेजक एवं असंवैधानिक बातों को खुले आँख-कान और बुद्धि से परख कर मानना होगा।

आज हमारे देश भारत को पूरे विश्व में आदर्श दर्जा प्राप्त है। सभी देशवासियों को अपने देश की और अपने समाज की उन्नति को ही प्राथमिकता देना होगी, तभी हम सबकी भलाई और प्रगति सम्भव है।

© डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’

पता : ‘विसुलोक‘ 2429, मधुवन कालोनी, उखरी रोड, विवेकानंद वार्ड, जबलपुर – 482002 मध्यप्रदेश, भारत
संपर्क : 9425325353
ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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