(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी द्वारा एक सार्थक, तार्किक एवं समसामयिक विषय पर आधारित व्यंग्य – बचाने वाले से मारने वाला बड़ा.. संदर्भ – आतंकी ड्रोन। इस विचारणीय रचना के लिए श्री विवेक रंजन जी की लेखनी को नमन।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 111 ☆
व्यंग्य – बचाने वाले से मारने वाला बड़ा.. संदर्भ – आतंकी ड्रोन
सिद्धार्थ एक दिन पाकिस्तान सीमा के निकट घूम रहे थे. राज कुमार सबका मन जीत लेने वाले सैनिक की वेषभूशा में थे. तभी राजकुमार को एक उड़ता हुआ ड्रोन दिखा. ड्रोन तेजी से पाकिस्तान से भारत की ओर उडान भरता घुसा चला आ रहा था. राजकुमार ने अपनी पिस्टल निकाली निशाना साधा और ड्रोन नीचे आ गिरा. दौड़ते हुये राजकुमार ड्रोन के निकट पहुंचे, आस पास से और भी लोगों ने गोली की आवाज सुनी और आसमान से कुछ गिरते हुये देखा तो वहां भीड एकत्रित हो गई. सखा बसंतक भी वहीं था जो आजकल पत्रकारिता करता है. किसी सनसनीखेज खुलासे की खोज में कैमरा लटकाये बसंतक प्रायः सिद्धार्थ के साथ ही बना रहता है. सिद्धार्थ ने निकट पहुंच कर देखा कि ड्रोन में विस्फोटक सामग्री का बंडल बधां हुआ है. तुरंत मिलिट्री पोलिस को इत्तला की गई. पडोसी मुल्क की साजिश बेनकाब और नाकाम हुई. टी वी पर ब्रेकिंग न्यूज चलने लगी. सिद्धार्थ की प्रशंसा होने लगी.
भाई देवदत्त को यह सब फूटी आंख नहीं भाया. शाम के टी वी डिबेट में भाई की पूरी लाबी सक्रिय हो गई. भाई ने कुतर्क दिया इतिहास गवाह है कि राजा शुद्धोधन के जमाने में जब उसने इसी तरह एक हंस को मार गिराया था तो “मारने वाले से बचाने वाला बडा होता है” यह हवाला देकर उसका गिराया हुआ हंस सिद्धार्थ को सौंप दिया गया था. अतः आज जब इस ड्रोन को सिद्धार्थ ने गिराया है तो, आई हुई मैत्री भेंट को उसे सौंप दिया जावे तथा सिद्धार्थ को ड्रोन मार गिराने के लिये कडी सजा दी जावे. ड्रोन भेजने वालो को बचाने के अपने नैतिक कर्तव्य की भी याद भाई ने डिबेट में दिलाई.
सिद्धार्थ के बचाव में बहस करते प्रवक्ता ने तर्क रखा बचाने वाले से मारने वाला भी संदर्भ और परिस्थितियों के अनुसार बड़ा होता है. कोरोना जैसे जीवाणुओ को मारना, खेलों में प्रतिद्वंदी खिलाड़ी को पटखनी देना, ब्रेन डेड मरीज को परिस्थिति वश मारने के इंजेक्शन देना, आतंकवादियो को मारना, युद्ध में विपक्षी सेना को मारना, सजायाफ्ता मुजरिम को फांसी देकर मारना भी बचाने वाले से मारने वाले को बड़ा बनाता है. भाई की लाबी ने बीच बीच में जोर से बोल बोलकर बाधा डालने की टी वी बहस परम्परा का पूरा निर्वाह किया. विधान सभाओ, राज्य सभा व लोक सभा कि तरह पता नही सबको समझ आने वाली सीधी सरल बातें भी भाई को क्या कितनी समझ आयी, पर टी वी डिबेट का समय समाप्त हो चुका था और अर्धनग्न बाला के स्नान का रोचक विज्ञापन चल रहा था जिसे देखने में देवदत्त खो गया.
© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
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