श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9th की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण कविता “अब हृदय के बोल गुम….” । )
☆ तन्मय साहित्य # 96 ☆
☆ अब हृदय के बोल गुम…. ☆
देह अपनी और मन है
अब अकेले ही मगन है।
और कब तक दलदलों में
यूँ उलझते ही रहेंगे
जान कर अनजान बन
गुणगान मुँह-देखे सहेंगे,
औपचारिक वंदनो में
झूठ के कितने जतन है……।
अछूता कोई नहीं
शामिल सभी इस सिंधु में
लगाते गोते रहे
बिन अंक के इस बिंदु में,
खुली आँखों से निहारे
वायवीय कल्पित सपन है…..।
कल्पनाओं का
न, कोई ओर कोई छोर है
जिंदगी उलझी हुई
बारीक सी इक डोर है,
द्वंद्व अंतर्जाल के
चहुँ ओर विस्तारित सघन है……।
अब कहाँ माधुर्य-मिश्री
घोलते से शब्द हैं
देख क्रिड़ायें मनुज की
गगन भी स्तब्ध है,
अब ह्रदय के बोल गुम
मस्तिष्क से निकले वचन है
© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश
मो. 9893266014
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
वाह वाह बहुत शानदार