श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं विशेष भावप्रवण कविता “संतोष के दोहे”। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 85 ☆
☆ संतोष के दोहे ☆
(कुवलय, कुमुदबन्धु, वाचक, विरहित, वापिका)
कुवलय के नव कुंज प्रभु, कमलापति श्रीधाम
सादर वन्दन आपको, हरिये दोष तमाम
कुमुद-बंधु छवि मोहनी, शीतल उसकी छाँव
विकसे बिपुल सरोज जब, लगता सुंदर गाँव
वाचक ऐसा चाहिए, जिसके मीठे बोल
वाणी से झगड़े बढ़ें, वाणी है अनमोल
विरहित रहे जो प्रेम से, देखे बस निज काम
प्रेम बढ़ाता दायरा, यह ही राधे-श्याम
ताल तलैया वापिका, गाँवो की पहिचान
पानी के साधन सुलभ, राजाओं की शान
© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
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