आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि। संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताeह रविवार को “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित ‘गीत सलिला: तुमको देखा ..…’। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 56 ☆
☆ गीत सलिला: तुमको देखा .. ☆
तुमको देखा
तो मरुथल मन
हरा हो गया।
*
चंचल चितवन मृगया करती
मीठी वाणी थकन मिटाती।
रूप माधुरी मन ललचाकर –
संतों से वैराग छुड़ाती।
खोटा सिक्का
दरस-परस पा
खरा हो गया।
तुमको देखा
तो मरुथल मन
हरा हो गया।
*
उषा गाल पर, माथे सूरज
अधर कमल-दल, रद मणि-मुक्ता।
चिबुक चंदनी, व्याल केश-लट
शारद-रमा-उमा संयुक्ता।
ध्यान किया तो
रीता मन-घट
भरा हो गया।
तुमको देखा
तो मरुथल मन
हरा हो गया।
*
सदा सुहागन, तुलसी चौरा
बिना तुम्हारे आँगन सूना।
तुम जितना हो मुझे सुमिरतीं
तुम्हें सुमिरता है मन दूना।
साथ तुम्हारे गगन
हुआ मन, दूर हुईं तो
धरा हो गया।
तुमको देखा
तो मरुथल मन
हरा हो गया।
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© आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
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