श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9th की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण कविता “कैसे पीड़ा सही पिताजी…..” । )
☆ तन्मय साहित्य # 97 ☆
☆ कैसे पीड़ा सही पिताजी…..☆
दर्द समझ में अब आता है
कैसे पीड़ा सही, पिताजी
समझ आज अब आया मुझको
मैं जब बूढ़ा हुआ, पिताजी!
खटिया रही कराह
बिना इक पल के उसे विराम नहीं
एक आसरा वही रहा अब
सुबह वही औ’ शाम वही,
सिरहाने में दबे प्रश्न
अब क्या उत्तर दूँ आज, पिताजी!….
कोठरियों में अपने अपने
बच्चे सब हँस बोल रहे
चादर ओढ़ अकेला मन
गुमसुम गुमसुम चुप्पियाँ सहे
अर्थहीन हो गए आज
खोए अपने में स्वजन, पिताजी!…..
चाय नाश्ता थाली भोजन की
कमरे में आ जाती
पूछताछ में कैसे हो
बस इतनी कही, सुनी जाती,
मनमर्जी से सारे निर्णय
अब सब लेने लगे, पिताजी!…..
आते जाते हाल पूछते
फुर्सत किसे पास बैठे
कष्ट कराहें आहें घुटन
अबोले ही सब कुछ सहते,
विधि के इस चक्रीय विधान को
अंगीकृत कर लिया, पिताजी
कैसे सहा आपने ये सब
कभी शिकायत करी न हमसे
बंद कान दीवारों के भी
सहज किया स्वीकार स्वमन से
मैं भी तुम जैसा बनने की
कोशिश अब कर रहा, पिताजी! ….
© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश
मो. 9893266014
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना बधाई