डॉ. ऋचा शर्मा

(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में  अवश्य मिली है  किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं। आप ई-अभिव्यक्ति में  प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है स्त्री विमर्श पर आधारित एक विचारणीय एवं अतिसंवेदनशील लघुकथा एक औरत के मन की मौत । डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को इस संवेदनशील लघुकथा रचने के लिए सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद  # 70 ☆

☆ एक औरत के मन की मौत ☆

उसने परिवार में सबको बार – बार बताने की कोशिश की कि वह मर रही है धीरे – धीरे। शरीर से नहीं, वह  तो अपने सारे काम कर रहा है। रोजमर्रा की जिंदगी चल रही है। बाहर किसी को कुछ खबर ही नहीं है। कैसे हो? जब घर में ही उसे कोई नहीं समझ रहा है तो बाहरवालों से क्या कहे? उसका मन मर रहा है बेमौत। अकेलापन धीमे जहर की तरह असर दिखा रहा है। घर में बिखरा सन्नाटा अजगर की तरह उसे लील रहा है। बचा सको तो बचा लो, उसने कई बार पुकारा था पर सब दूर से हाथ दिखाते रहे, दिलासा देते रहे। ठीक हो ना? हाँ ऐसी ही रहो और चल देते अपने – अपने रास्ते। खुलकर समझाना भी चाहा उसने, हाथ पकडकर रोका, सुन लो मेरी बात, पर हर बार उसे ही दोष देकर निकल लिए – तुम तो ऐसी ही हो। उसका मन बैचैन रहा।  

बच्चे अपनी जिंदगी में व्यस्त और उसके पतिदेव फोन पर आदर्शवादी मैसेज फॉरवर्ड कर दुनिया को संभालने में लगे थे। वह डूबती जा रही थी गहरे और गहरे। दम घुट रहा था मानों, पानी में डूबनेवाले की तरह तेजी से हाथ ऊपर उठाकर ध्यान दिलाने की कोशिश की लेकिन नहीं, कोई नहीं पलटा उसकी ओर। पता नहीं अपने मन की बात बताने लायक रहेगी भी कि नहीं? वह धीरे- धीरे गहरे पानी के तल में पत्थरों, सीपियों पर जा गिरी। गहरे हरे रंग की काई सब तरफ बिछी हुई थी, उलझ गई उसमें। रंग बिरंगी मछ्लियां उसके ऊपर से तैर कर इधर – उधर जा रही थीं। एक्वेरियम में अपनी लाश उसे साफ दिखाई दे रही थी।

परिवारवाले उसकी मानसिक मौत के कारण तलाश रहे थे।

© डॉ. ऋचा शर्मा

अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर.

122/1 अ, सुखकर्ता कॉलोनी, (रेलवे ब्रिज के पास) कायनेटिक चौक, अहमदनगर (महा.) – 414005

e-mail – [email protected]  मोबाईल – 09370288414.

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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सुशील आजाद

उत्तम जी। यथार्थ बोध

अभय

बेहद मार्मिक रचना है।
जीता जागता उदाहरण पेश कर रही है।।

विनय कुमार

बहुत अच्छी लघुकथा

Bharat

हर भारतीय महिला की कहानी है।