श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है स्त्री विमर्श पर आधारित एक लघुकथा “बिखरे मोती”। इस विचारणीय लघुकथा के लिए श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ जी की लेखनी को सादर नमन। )
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 93 ☆
लघुकथा – बिखरे मोती
सरला के कम पढ़े लिखे होने को लेकर लगातार ससुराल में बात होती थीं। घर में कलह का कारण बन चुका था। सभी कार्य में निपुण सरला अपनी परिस्थिति, मॉं-पिता जी की कमाई की वजह से पढ़ाई नहीं कर सकी जिसका उसे बेहद अफसोस होता था।
शादी अच्छे घर में हुई। पति मनोज अच्छी कंपनी में कार्य करते थे। परंतु पत्नी के कम पढ़े लिखे को वह अपनी कमजोरी और गिल्टी महसूस करते थे। इसी वजह से सरला ने घर से जाने का फैसला कर लिया और अपने घर आकर बुटीक का काम सीखकर एक अच्छे से मार्केट में दुकान डाल दी।
देखते-देखते दुकान चल निकली। अब उसके बुटीक पर लगभग दस महिलाएं काम करती थी। सरला सभी को बहुत प्यार से रखती थी। और सभी की मजबूरी समझती थी।
आज सुबह दुकान खुली तो एक दफ्तर से बहुत सारे डिजाइनर कुर्तों के डिमांड आए । सरला उसी को पूरा करने के लिए लग गई। देखते-देखते दिन भर में उसकी सखियों ने मिलकर सभी आर्डर के कुर्ते जो दफ्तर के थे तैयार कर दिए। रात होते-होते उसको देना था क्योंकि सुबह उस दफ्तर में कार्यक्रम होना था।
काम निपटा सभी चाय पी रहे थे। उसी समय चमचमाती कार से जो सज्जन उतरे उसको देख सरला ठिठक सी गई पर सहज होते हुए बोली:-” आइए आपका ऑर्डर सब तैयार है।” मनोज सरला का पति विश्वास नहीं कर पा रहा था कि उसकी सरला आज इस मुकाम पर है।
वह रसीद ले रुपए देकर धीरे से सरला के पास आकर कहने लगा – “सरला तुमने सुई धागा से बहुत कुछ संजो लिए हैं। मेरे घर में तो सभी मोती बिखर गए हैं। यदि मुझे माफ कर सको तो सुई धागा बन मेरे बिखरे मोती को एक बार फिर से समेट लो।”
सरला अवाक होकर उसे देखती रही। मनोज ने कहा:-” मैं इंतजार करूंगा और मुस्कुराता हुआ निकल गया। “
© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
सुंदर कहानी