श्री आशीष कुमार

 

(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में  साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। अब  प्रत्येक शनिवार आप पढ़ सकेंगे  उनके स्थायी स्तम्भ  “आशीष साहित्य”में  उनकी पुस्तक  पूर्ण विनाशक के महत्वपूर्ण अध्याय।  इस कड़ी में आज प्रस्तुत है   “अद्भुत पराक्रम।)

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ आशीष साहित्य – # 8 ☆

 

☆ अद्भुत पराक्रम 

 

सभी प्रकार के वायु के ज्ञाता, वायु में अपनी गति शुरू करते हैं । समुद्र के ऊपर आकाश में कुछ दूरी चलने के बाद, एक समुद्री राक्षस ने भगवान हनुमान के मार्ग को अवरुद्ध कर दिया ।

यह सुरसा थी ‘सुर’ का अर्थ है देवता और ‘सा’ का अर्थ समान है । तो सुरसा का अर्थ देवता के समान है या वो जिसमें देवतो जैसी शक्तियाँ हैं । वह कश्यप और क्रोधवश की 10 बेटियों में से एक और साँपो की माँ थी ।

उसने भगवान हनुमान को रोक दिया और कहा, “हे! वानर  तुम कहाँ जा रहे हो? मुझे भगवान ब्रह्मा से वरदान प्राप्त है कि मेरे मुँह  में प्रवेश किए बिना कोई भी इस स्थान से आगे नहीं जा सकता है”

भगवान हनुमान ने उत्तर दिया, “ठीक है, पहले मैं आपको अपना परिचय दूँगा । मैं हनुमान हूँ और भगवान राम की पत्नी देवी सीता को लंका में  खोजने जा रहा हूँ ”

जैसे की प्रत्येक प्राणी की मूल प्रकृति होती है की जब हम कोई नया नाम सुनते हैं तो हम इसे दोहराते हैं । तो सुरसा ने कहा, “ओह हनुमान! लेकिन तुम्हे मेरे मुँह  में आना होगा”

जल्द ही भगवान हनुमान ने कहा, “हे देवी, अपने अभी अपने मुँह  से हनुमान नाम पुकारा । नाम को किसी भी जीवित व्यक्ति की पहचान के रूप में परिभाषित किया गया है । इसलिए जब आपने अपने मुँह से मेरा नाम पुकारा, तो आपका वरदान विफल नहीं हुआ क्योंकि हनुमान आपके मुँह  से आया ”

सुरसा, भगवान हनुमान की बुद्धि से बहुत प्रभावित हुई और हाँ, भगवान ब्रह्मा जी का वरदान भी असफल नहीं हुआ । तब सुरसा ने भगवान हनुमान को आशीर्वाद दिया और उनका मार्ग छोड़ दिया । भगवान हनुमान समुद्र के ऊपर आकाश में अपने रास्ते पर आगे बढ़ गए ।

भगवान हनुमान काले और सफेद बादलों से गुज़रते हुए आगे बढ़ रहे थे जिसमे से कुछ सिर्फ देखावे की लिए थे अन्य कुछ बादलो में बारिश के लिए पानी भरा था ।

तभी समुद्र में से एक मादा राक्षसी सिंहिका (अर्थ : शेरनी की शक्तियों से युक्त) उभर कर ऊपर आयी । सिंहिका हिरण्यकशिपु की पुत्री और छाया ग्रह राहु (जो सूर्य और चंद्रमा पर ग्रहण लगाने के लिए जिम्मेदार होता है) की माँ थी । दरअसल सिंहिका ‘मन्देह’ नामक एक प्रकार की रक्षसी थी ‘मन’ का अर्थ है मस्तिष्क की विचार प्रक्रिया और ‘देह’ का अर्थ है शरीर इसलिए मन्देह किसी के शरीर और मस्तिष्क  के बीच के सामंजस्य का प्रतीक है । इस प्रजाति के राक्षस चट्टानों पर लटके रहते है गर्मी को सहन नहीं कर सकते इसलिए रोज सूरज से लड़ते प्रतीत होते हैं और सूर्योदय के समय पानी में छिपे रहते हैं ।

हिरण्यकशिपु  हिरण्य अर्थात “सोना,” कशिपु अथार्त “मुलायम कुशन” या स्वर्ण आभा या सोने के कपड़े पहने हुए, एक ऐसे व्यक्ति को चित्रित करने के लिए कहा है जो धन और यौन जीवन का बहुत शौकीन है, उनके छोटे भाई, हिरण्यक्ष को विष्णु भगवन के अवतारों में से एक वाराह ने मारा था । अपने भाई की मृत्यु से नाराज, हिरण्यकशिपु ने भगवान ब्रह्मा से तपस्या करके जादुई शक्तियाँ  हासिल करने का निर्णय  किया । बाद में उन्हें भगवान विष्णु के नृसिंह अवतार ने मारा । किंवदंती के अनुसार, हिरण्यकशिपु, असुरो का राजा था और उसने ब्रह्मा से वरदान अर्जित किया था जिसने उसे लगभग अविनाशी बना दिया था । वह घमंडी हो गया, सोचा कि वह ईश्वर है, और माँग की कि हर कोई केवल उसकी पूजा करे ।

सिंहिका ने अपने आप से कहा, “एक बड़ा प्राणी लंबे समय बाद दिखाई दिया है । आज मैं इस प्राणी को खाऊंगी और अपनी भूख मिटाऊँगी” यह सोचकर वह भगवान हनुमान की छाया को पकड़ती है । हनुमान अचानक मिले बंधन से परेशान हो जाते है । जैसे सिंहिका का पुत्र राहु, सूर्य और चन्द्रमा पर ग्रहण लगा सकता है इसी तरह वह हवा पर ग्रहण लगा सकती थी । सिंहिका वायु के प्रवाह को रोकती है जिसके कारण कोई भी उड़ने वाला जीव कुछ पल के लिए आकाश में रुक जाता है, और सिंहिका समुद्र के पानी पर उड़ने वाले जीव की छाया देखकर उस छाया को पकड़ लेती है, इससे की वो उड़ने वाला जीव एक ही जगह बंद हो जाता है और तेजी से नीचे समुन्द्र में गिरने लगता है, और वह उन्हें पकड़ कर खा लेती है ।

पवन पुत्र भगवान हनुमान ने उनका मार्ग सिंहिका द्वारा अवरुद्ध किये जाने के बाद चारों ओर देखा और बाद में समुद्र की सतह पर सिंहिका को खड़ा पाया ।

भगवान हनुमान को तुरंत एहसास हुआ कि यह सिंहिका ही है जो उन पर आक्रमण कर रही थी, और जल्द ही भगवान हनुमान ने अपने शरीर को बढ़ाना शुरू कर दिया, फिर उन्होंने अपने शरीर को एक दम से छोटा कर दिया और सिंहिका के मुँह में घुस कर उसके सिर को भेद कर बहार निकल आये । भगवान हनुमान ने उसके पैरों को भी उसके शरीर से अलग कर दिया । उसने रोना शुरू कर दिया और समुद्र में गिर गयी और फिर भगवान हनुमान से अनुरोध किया ” ओह! ताकतवर भगवान, मेरी गलती भूल जाओ और मुझ पर दया करो । अब मैं हिलने में भी असमर्थ हूँ । कृपया मुझे समुद्र में एक ऐसा स्थान सुझाएं जहाँ पर विभिन्न प्राणियों का आना जाना हो  और  जहाँ   से मैं पानी पर उनकी छाया देख कर अपने  लिए अपना खाना पकड़ सकू क्योंकि अब मैं हिल डुल नहीं सकती”

भगवान हनुमान ने अपने शरीर के आकार को बढ़ाने के बाद उसे अपनी हथेली में रखा और एक विशेष दिशा में फेंक दिया ।

वह जगह जहाँ वह गिर थी वह अभी भी एक रहस्य है, और उत्तरी अटलांटिक महासागर के पश्चिमी हिस्से में परिभाषित क्षेत्र है, जहाँ  आज भी रहस्यमय परिस्थितियों में कई विमान और जहाज गायब हो जाते हैं । हाँ, वह स्थान जहाँ पर सिंहिका की उपस्थिति अभी भी अनुभव की जाती है वह बरमूडा त्रिभुज है । जो अभी भी उस जगह पर गुजरने वाले हवाईजहाज और समुद्री जहाजों के रूप में अपना खाना पकड़ती है ।

आकाश से देवता ने भगवान हनुमान को आशीर्वाद दिया ताकि वह अपने प्रयोजन में सफल हो सके । उन्होंने कहा, “हे! महान वानर  जिनके पास चार गुण हैं: धर्ति – साहस, दृष्टि – दूरदर्शिता, मती – बुद्धि और दक्ष्य – क्षमता होते है वो अपने उद्देश्यों में कभी विफल नहीं होते ।

 

© आशीष कुमार  

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