श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं विशेष भावप्रवण कविता “संतोष के दोहे”। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 87 ☆
☆ संतोष के दोहे ☆
(कवच, राहत, उड़ान, व्यवसाय, ललित)
अपने बच्चों के लिए, कवच बनें माँ बाप
आता संकट जब कभी, साथ खड़े हों आप
निशि-दिन देखो बढ़ रही, मॅहगाई की मार
राहत जाने कब मिले, खर्चे बढ़े अपार
भारत भी भरने लगा, नई विकास उड़ान
ध्वज लहराया चाँद पर, खूब मिला सम्मान
कोरोना के काल में, बन्द हुए व्यवसाय
खत्म हुए धंधे कई, होती कैसे आय
दिया प्रकृति ने है हमें, ललित कला का कोष
फिर भी हैं देते सदा, हम उसको ही दोष
© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
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