हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ व्यंग्य # 101 ☆ कबड्डी खेलता डालर ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय व्यंग्य  ‘कबड्डी खेलता डालर)  

☆ व्यंग्य # 101 ☆ कबड्डी खेलता डालर ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

रुपए की कीमत के दिनों दिन गिरने से एक रुपए वाला नोट चिंतित रहता है और चिंता की बात ये भी है कि अर्थव्यवस्था के बारे में जो दावे किए जा रहे हैं उसमें जनता को झटका मारने की प्रवृत्ति क्यों झलक रही है।

एक रुपए के नोट की चिंता जायज है, क्योंकि उसको कोई पूछता नहीं। जिनके पास एक रुपए का नया नोट है वो नोट दिखाने में नखरे पेल रहे हैं, एक रुपए का नोट दिखाने का दस रुपए ले रहे हैं। आपको जानकर यह आश्चर्यजनक लगेगा कि बहुत पहले एक डालर एक रुपए का होता था। पहले कोई नहीं जानता था कि दुष्ट डालर का रुपए से कोई संबंध भी हो जाएगा, और डालर इस तरह से रुपए के साथ कबड्डी खेलने लगेगा। पहले रुपया मस्त रहता था, कभी टेंशन में नहीं रहता था। टेंशन में रहा होता तो रुपये को कब की डायबिटीज और बी पी की बीमारी हो जाती।

पहले तो रुपया उछल कूद कर के खुद भी खुश रहता और सबको सुखी रखता था। तब रुपैया की बारह आना से खूब पटती थी दोनों सुखी थे एकन्नी में पेट भर चाय और दुअन्नी में पेट भर पकौड़ा से काम चल जाता था कोई भूख से नहीं मरता था। घर का मुखिया परिवार के बारह लोगों को हंसी खुशी से पाल लेता था। अब तो गजब हो गया, बाप – महतारी को बेटे बर्फ के बांट से तौलकर अलग अलग बांट लेते हैं ।ये सब तभी से हुआ जबसे ये दुष्ट डालर रुपये पर बुरी नजर रखने लगा…… ये साला डालर कभी भी बेचारे रुपये का कान पकड़ कर झकझोर देता है। जैसई देखा कि साहब का सीना चौड़ा हो गया, उसी दिन से टंगड़ी मार कर रुपये को गिराने का चक्कर चला दिया। डालर को पहले से पता चल जाता है कि साहब का अहंकार का मीटर उछाल पर है। जैसे ही भाषण में लटके झटके आये और हर बात पर पिछले सात दशक का जिक्र आया,  भाषण के पहले उसी दिन रुपए को उठा के पटकनी दे देता है। जो लोग ‘डालर’ पहन के भाषण सुनने जाते हैं उनकी अंडरवियर गीली हो जाती है और एलास्टिक जकड़ जाती है।

हमारे नेताओं की अपना घर भरने की प्रवृत्ति को जब डालर  जान गया तो अट्टहास करके उछाल मारने लगा। डालर ये अच्छी तरह समझ गया कि भारत में नेताओं का रूपये खाने का शौक है और भारतीय महिलाओं का सोने से प्रेम है, इस कमजोरी का फायदा उठाते हुए वो दादागिरी पर उतारू हो गया। इसी के चलते  चाहे जब रुपये को पटक कर चारों खाने चित्त कर देता है।

और भारत की तरफ व्यंग्य बाण चला कर वो कहता है कि मजबूत मुद्रा किसी भी देश की आर्थिक स्थिति की मजबूती का प्रमाण होती है तो जब रुपया लगातार गिर रहा है तो सरकार क्यों कह रही है कि हम आर्थिक रुप से मजबूत हो रहे हैं क्योंकि हमारी देशभक्ति और विकास में आस्था है।

© जय प्रकाश पाण्डेय

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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈