हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 54 – लो सिमटने लग गईं …☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज पस्तुत है आपका अभिनव गीत “लो सिमटने लग गईं …। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 54 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ लो सिमटने लग गईं …  ☆

बादलों का पलट कर अलबम

निकल आयी गुनगुनी

सी धूप

 

हो उठे रंगीन डैने

पक्षियों के

ज्यों सजग चेहरे हुये आरक्षियों के

 

लौट आयी है पुनः

सेवा- समय पर

पेड़ के, छाया

बना स्तूप

 

लो सिमटने लग गईं

परछाइयाँ

वनस्पतियाँ ले रहीं

अँगड़ाइयाँ

 

राज्य जो छीना

पड़ोसी शत्रु ने

पा गया फिर से

अकिंचन भूप

 

हो गयीं सम्वाद

करने व्यस्त चिडियाँ

खोल दीं फूलों ने

अपनी चुप पखुड़ियाँ

 

ज्यों कि कालीदास के

अनुपम कथन में

नायिका का दिव्य

सुन्दर रुप

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

10-09-2021

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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈