हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 88 – लघुकथा – फासले ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण लघुकथा  “फासले।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 88

☆ लघुकथा — फासले ☆ 

जय की शादी में मंच पर उस के पिता नहीं आए तो नवविवाहिता अपने को रोक नहीं पाई. अपने पति से पूछ बैठी, “ पापा जी !”

“मंच पर नहीं आएँगे,” जय की आँखों में आंसू आ गए, “ मैं भी चाहता हूँ कि वे यहाँ नहीं आएं.”

पत्नी की निगाहों में प्रश्न था. पति ने धीरे से कहा,“ उन्हें मेरी माँ ने ऐसे ही एक मंच पर, अपनी शादी में बुला कर अपने नए पति के सामने मुझे सौंप दिया था – मुझे अपना प्यार मिल गया और आप को अपना पूत. इसे  सम्हालना.” अभी बेटे की बात खत्म नहीं हुई थी कि पिताजी मंच पर खड़े मुस्करा रहे थे.

मानो कह रहे हो,” बेटा ! इस टीस को कब तक सम्हाल कर तो नहीं रख सकता हूँ ना ?”

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

13-08-21

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