सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा
(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “समंदर और वो ”। )
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☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 91 ☆
☆ समंदर और वो ☆
जाने क्यों उसे वो समंदर
बहुत अपने सा लगने लगा था!
वो जाकर उसके किनारे पर बैठ जाती
और देखती उसकी आती और जाती मौजों को-
कभी उसके पानी को अपनी अंजुली में उठाकर
अपने चेहरे पर डालती
और ख़ुशी से अभिभूत हो जाती,
कभी उसमें पाँव डालकर
उसका सुहावना स्पर्श महसूस करती
और कभी पानी में खड़ी होकर दूर तक दौड़ती!
समंदर ही उसकी ज़िंदगी था!
समंदर ही उसकी मंजिल थी!
एक दिन यूँ ही जब लहरों को निहारती हुई
वो बैठी थी किनारे पर,
तो उसे नींद की झपकी आ गयी-
जब उठी तो देखा लहरें पीछे को सरक रही हैं!
वो लहरों के पीछे भागी…
लहरें और पीछे हुईं…
वो भागती रही,
और समंदर भी अपना आँचल समेटता रहा!
जब कुछ भी हाथ नहीं आया
तो वो बैठ गयी थक-हारकर,
यूँ जैसे उसकी ज़िंदगी ख़त्म हो गयी हो
और रात ढलने पर सो गयी वहीँ
उस रेत पर जिसके जिगर में उसी की तरह नमी थी!
यह तो सुबह होने के बाद उसने जाना
कि यह एहसास खूबसूरत ही है
जहां सब कुछ खाली-खाली हो!
उसने अपने जिगर में उग रही किरणों के साथ
एक नयी ज़िंदगी शुरू कर दी!
जब समंदर अपनी लहरों के एहसास के साथ
फिर से आया उससे मिलने,
वो वहाँ से चली गयी थी दूर, बहुत दूर,
ताकि समंदर उसका पता भी न जान पाए!
© नीलम सक्सेना चंद्रा
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
बहुत ही सुन्दर रचना