डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 64 – दोहे
राम सिया की रुदन का, ज्ञात नहीं इतिहास।
संभव आँसू स्वयं ही, चले गए वनवास।।
आँसू जिनकी आँख में ,पाते नहीं पनाह।
व्यर्थ जिंदगी हो गई, अगर ना निकली आह।।
आँसू शिशु की आँख के, गंगा सदृश पवित्र।
निर्मल मन से देख लो, अपने मन का चित्र।।
आँसू निकले रूप के, गात हुआ कश्मीर ।
हार चुका में खोज कर, मिली ना एक नजीर।।
पीड़ा के संतान का, आँसू रक्खा नाम।
जो भी इसको दे बदल ,कह पाए इनाम।।
आँसू ने अपनी तरह, अपना किया निबाह।
सब थे अपनी तरह के, गए बदल कर राह।
आँसू शबनम एक से ,अलग अलग है वंश।
एक चाह की चाशनी, दूजा देता दंश।।
© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
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