डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 66 – दोहे
सेवक बनकर गए तुम, उपजी स्वामी-साध।
सत्ता के सुख स्वाद वश, हुए बहुत अपराध।।
मगन गगन उड़ते रहे, रखे न पांव जमीन।
तुम्हें कमी कब रही है, हम ही रहे ‘कमीन’।।
तुम ‘सुनार’ की तरह हो, जनता ठेठ ‘लुहार’।
एक लहर में कराती, सब का बेड़ा पार।
प्रेम, समर्पण, मधुरता, प्रिय जन का विश्वास।
दूरदर्शनों ने किया, सब का सत्यानाश।।
उपग्रह चैनल ने किया, काफी कुछ उपकार
लेकिन खतरे कम नहीं, करलें तनिक विचार।।
© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
बेहतरीन अभिव्यक्ति