श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है सजल “आओ लौटें बालपन में… ”। अब आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 9 – आओ लौटें बालपन में… ☆
सजल
समांत – आरे
पदांत –
मात्राभार- 14
राह हरियाली निहारे।
गाँव की यादें पुकारे।।
आओ लौटें बालपन में,
जो सदा हमको सँवारे।
गाँव की पगडंडियों में,
प्रियजनों के थे दुलारे।
गर्मियों की छुट्टियों में,
मौज मस्ती दिन गुजारे।
बैठकर अमराइयों में,
चूसते थे आम सारे।
ताकते ही रह गए थे,
बाग के रक्षक बिचारे।
आँख से आँखें मिलें जब,
प्रेम के होते इशारे।
पहुँच जाते थे नदी तट,
प्रकृति के अनुपम नजारे।
भूल न पाए हैं बचपन,
संग-साथी थे हमारे।
© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
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