हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 97 – लघुकथा – मजबूर ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय  लघुकथा  “मजबूर।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 97 ☆

☆ लघुकथा — मजबूर ☆ 

जैसे ही कार रुकीं और ड्राइवर उतरा, वैसे ही ‘क’ ने ड्राइवर सीट संभाल ली। तभी कार के अंदर बैठे हुए ‘ब’ ने कहा,” अरे! कार रोको। वह भी रतनगढ़ जाएगा।”

” अरे नहीं!” ‘क’ ने जवाब दिया,” वह रतनगढ़ नहीं जाएगा।”

इस पर ‘ब’ बोला,” उसने घर पर ही कह दिया था। मैं अपनी कार से नहीं चलूंगा। आपके साथ चलूंगा।”

” मगर अभी थोड़ी देर पहले, जब वह अपनी कार से उतर रहा था तब मैंने उससे पूछा था कि रतनगढ़ जाओगे? तो उसने मना कर दिया था,” यह कहते हुए ‘क’ ने ड्राइवर सीट की विंडो से गर्दन बाहर निकाल कर जोर से पूछा,” क्यों भाई! रतनगढ़ चलना है क्या?”

उसने इधर-उधर देखा। ” नहीं,” धीरे  से कहा। और ‘नहीं’ में गर्दन हिला दी। यह देखकर ‘ब’ कभी उसकी ओर, कभी ‘क’ की और देख रहा था। ताकि उसके मना करने का कारण खोज सके।

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

01-12-2021

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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈