हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 78 ☆ दमखम दिखाने दो ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक सार्थक एवं विचारणीय रचना “दमखम दिखाने दो”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन।

आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 78 – दमखम दिखाने दो 

प्रतिस्पर्धा होनी चाहिए। बहुत से बिंदु इस आधार पर तय होते हैं कि सामने वाला क्या कर रहा है, हम उससे कैसे खुद को बेहतर बनाकर प्रस्तुत करें। आनन -फानन में मगनलाल जी एक से बढ़कर एक कारनामें करते जा रहे हैं ये बात अलग है कि वे वही करते हैं जो कार्यालय के प्रमुख जी करते हैं। झूठ की बुनियाद पर कागज की नाव चलकर जैसे तैसे हीरो तो बन गए पर इस बात का डर हमेशा बना रहता है कि कहीं जल के बहाव में भींग कर अपना अस्तित्व न मिटा दें। सो वे सारे बुद्धिजीवी वर्ग से दूरी बनाते हुए मूर्खों को ही साथ लेकर चलने में भलाई समझते हैं।

कहीं ऐसा न हो कि कोई राजपाठ लेकर भाग जाए वैसे भी भागने और भगाने का क्रम तो अनवरत चलता रहा है। अपनी मर्जी से सौंपने की तैयारी करिए अन्यथा हमसे छीनते भी बनता है। हम भी गुटबाजी में सुकून महसूस करते हैं। बिना तोड़फोड़ आंनद  नहीं आता। जल का उतार- चढ़ाव ही लहरों व किनारों के बीच जुड़ाव बनाए रखता है। बहसबाजी के दौरान  कई कड़वे सत्य निकल कर आते हैं। कहते हैं कि  बिना मौसम की बरसात किसी न किसी अनिष्ट का संकेत है सो  ऐसी बरसातों के लिए तैयार होना समझदार व्यक्ति की निशानी होती है।

कई बार जाने अनजाने लोग ग़लतियाँ कर देते हैं जिससे  लोग उनसे दूरी बना लेते हैं। होना ये चाहिए कि हम किसी भी विवाद पर जल्दबाजी में प्रतिक्रिया न दें, थोड़ा धैर्य रखने से उलझन कम होती है, सिक्के दोनों पहलुओं को समझने का समय भी मिल जाता है।

ध्यान से देखें तो लगभग सारे विवाद अकारण ही होते हैं जिनके मूल में कोई आधार नहीं रहता  बस  अपने को सही साबित करने की होड़ में लोग दूर होते चले जाते हैं।  ऐसे में मूक दर्शक मन ही मन अपना निर्णय सुरक्षित रख लेते हैं व कौन  कैसा है, किसकी ग़लती है ये सब आँकलन करते हैं। इस दौरान मजेदार बात सामने आती है कि जो कुछ नहीं करता वो सामने से आकर बिना बात हंगामा करते हुए सब कुछ छोड़ देता है और पलायन में ही अपना भविष्य सुरक्षित समझता है। बात – बेबात पर अपना रुतबा दिखाने वाले अंत में पेपरबाजी पर उतर आते हैं और सारा श्रेय लेकर स्वयंसिद्धा बनकर इतराते हुए अघोषित जंग को जीतने का दमखम दिखाने लगते हैं।

अतः कोई भी निर्णय लेने से पहले कई बार अवश्य सोचे तभी सकारात्मक हल मिलेगा और अच्छे लोग आपके साथ जुड़े रह पायेंगे।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈