डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं “भावना के दोहे ”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 109 – साहित्य निकुंज ☆
☆ भावना के दोहे ☆
माँ का आँचल देखकर, बदली उसकी चाल।
ममता उसको मिल रही, खुश हो जाता लाल ।।
आनन की शोभा बढ़ी, देख मधुर मुस्कान।
गाल गुलाबी हो रहे, सुंदरता की शान।।
झटकी अलकें देखकर, रुक जाती तकरार।
मन तो कैसे रीझता, हो जाता है प्यार।।
सूरत तेरी मोहिनी, आँखें हैं अनमोल।
जो भी मन में हो रहा, तू नयनों से बोल।।
अधरों पर धर बाँसुरी, लिया प्रेम आलाप।
दौड़ी आई राधिका, दूर हुए संताप।।
© डॉ.भावना शुक्ल
सहसंपादक…प्राची
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बढ़िया