प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित एक भावप्रवण “गजल”। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। )
☆ काव्य धारा # 57 ☆ गजल – समय ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध ☆
जग में सबको हँसाता है औ’ रूलाता है समय।
सुख औ’ दुख के चित्र रचता औ’ मिटाता है समय।
है चितेरा समय ही संसार के श्रृंगार का
नई खबरों का सतत संवाददाता है समय।
बदलती रहती ये दुनियाँ समय के सहयोग से
आशा की पैगों पै सबको नित झुलाता है समय।
नियति को, श्रम को, प्रगति को है इसी का आसरा
तपस्वी को तपस्या का फल प्रदाता है समय।
भावना मय कामना को दिखाता है रास्ता
हर गुणी साधक को शुभ अवसर दिलाता है समय।
सखा है विश्वास का, व्यवसाय का, व्यापार का
व्यक्ति की पद-प्रतिष्ठा का अधिष्ठाता है समय।
नियंता है विष्व का, पालक प्रकृति परिवेश का
सखा है परमात्मा का, युग-विधाता है समय।
शक्तिशाली है, सदा रचता नया इतिहास है
किन्तु जाकर फिर कभी वापस न आता है समय।
सिखाता संसार को सब समय का आदर करें
सोने वालों को हमेशा छोड़ जाता है समय।
है अनादि अनंत फिर भी है बहुत सीमित सदा
जो समय को पूजते उनको बनाता है समय।
हर सजग श्रम करने वाले को है इसका वायदा
एक बार ’विदग्ध’ उसको यश दिलाता है समय।
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी भोपाल ४६२०२३
मो. 9425484452
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈