डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 67 – दोहे
आँसू थे जयदेव के, ढले गीत गोविंद ।
विद्यापति का अश्रु दल, खिला गीत अरविंद।।
सत्य प्रेम से कर सके, जो सच्चा अनुबंध ।
जो पूजे श्रम देवता, भरे अश्रु सौगंध ।।
प्रियवर आये द्वार पर, मना लिया त्यौहार ।
पलक पावडे बिछ गए, आँसू वंदनवार ।।
नयन नयन से भर रहे, आँसू को अँकवार।
पूछ रहे कब मिले थे, हम तुम पिछली बार ।।
आँसू आए आंख में, पाहुन आए द्वार ।
आँसू पूछें करोगे, कब तक अत्याचार।।
© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
शानदार अभिव्यक्ति