डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण “ग़ज़ल”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 111 – साहित्य निकुंज ☆
☆ ग़ज़ल ☆
मिलेगा न मंजर उमर देखिए
कभी गौर से तो इधर देखिए ।
मिली है नज़र आज सालों के बाद
हमे इक नज़र आज भर देखिए ।
नज़र भी चुराकर मिलाते हैं वो
कि महबूब का ये हुनर देखिये
सरे आम ढूंढा तुझे ही यहाँ
मुहब्बत का मेरी असर देखिए ।।
अपना बनाने की कस्मे खाई
लगी प्यार की ऐसी मुहर देखिये।।
© डॉ.भावना शुक्ल
सहसंपादक…प्राची
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