श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है सजल “दिल सभी का नेक था… ”। अब आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 12 – दिल सभी का नेक था… ☆
समांत-ईत
पदांत- की
मात्राभार- 19
याद आती है कभी मनमीत की।
बादलों से तरबतर संगीत की ।।
थे क्वाँरे स्वप्न तब मधुमास के,
डोर में जब बंँध गए थे प्रीत की।
भौंरों का गुँजन है मन को भा गया,
पंक्तियांँ तब बन गई थीं गीत की।
प्रेम का वह दौर है बढ़ता गया,
लहर आई थी अचानक शीत की।
अजनबी से चल दिए मुख मोड़कर,
होती थी यह पटकथा अतीत की।
दिल सभी का नेक था, ईमान था,
राह पकड़े थे सदा नवनीत की।
उमर की जब झुर्रियां हैं बढ़ गईं,
जिंदगी को गर्व है अब जीत की।
© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
14 जून 2021
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