डॉ कुन्दन सिंह परिहार

(आपसे यह  साझा करते हुए मुझे अत्यंत प्रसन्नता है कि  वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य e-abhivyakti के माध्यम से काफी पढ़ा एवं सराहा जाता रहा है।  उनकी रचनाएँ आप तक नियमित रूप से पहुंचा सकूँ इसके लिए मेरे अनुरोध को डॉ परिहार जी ने स्वीकारा  इसके लिए मैं उनका अत्यंत आभारी हूँ। अब आप  समय समय पर उनकी रचनाओं को पढ़ते रहेंगे । इसके अतिरिक्त हम प्रति रविवार उनका साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक से उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे।  आज प्रस्तुत है उनकी लघुकथा – “ओछा काम” जो निश्चित ही सराहनीय एवं शिक्षाप्रद रचना है एवं समाज को एक नई दृष्टि भी देती  है। आपको ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)
☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार ☆

☆ ओछा काम ☆

वर्मा जी के घर में काम तो सरिता की माँ करती है लेकिन उसकी ड्यूटी अक्सर सरिता को बजानी पड़ती है। कारण यह है कि माँ ने कई घरों में काम फँसा लिया है, इसलिए समय का टोटा बना रहता है। जब तब पुचकार कर सरिता से कहती है—-‘चली जा बेटी। जरा काम संभाल ले। मैं नहीं जा पाऊँगी। वैसे भी मेरी तबियत ठीक नहीं रहती। जी नहीं चलता।’

सरिता मुँह फुलाती है। दस बजे उसे बस्ता टाँग कर स्कूल जाना होता है, लेकिन वह माँ को मना नहीं कर सकती। अकेली माँ क्या क्या संभाले? किसी तरह गिरते-पड़ते वह उसके बताये घरों में झाड़ू-पोंछा, बर्तन करके स्कूल भागती है। वर्मा जी के घर में पोंछा लगाते समय उसकी आँखें टीवी पर जमी रहती हैं। कोई मज़ेदार दृश्य आते ही हाथ रुक जाता है। इसीलिए मिसेज़ वर्मा सारे वक्त हिदायत देतीं उसके पीछे मंडराती रहती हैं। पीछे से टेर लगाती हैं—-‘हाथ चला लड़की, हाथ चला।’

उस दिन टीवी पर डाक्टरों की हड़ताल और प्रदर्शन का दृश्य चल रहा था। कुछ तनख्वाह वगैरः बढ़ाने का मामला था। डाक्टर लोग मरीजों को भगवान भरोसे छोड़ अपना विरोध जताने के लिए बगबग सफेद गाउन पहने सड़क पर झाड़ू लगा रहे थे। दो डाक्टर ब्रश और पालिश लिये लोगों के जूतों पर पालिश करके उनसे पैसे माँग रहे थे। विरोध-प्रदर्शन के बावजूद माहौल मौज-मजे का था।

सरिता को मज़ा आया। ठुड्डी पर तर्जनी रखकर बोली, ‘ओ बप्पा, देखो डाक्टर लोग कैसे सड़क साफ कर रहे हैं। अच्छा है, ऐसा करेंगे तो सड़कें साफ रहेंगी।’

मिसेज़ वर्मा उसकी नादानी पर हँसकर बोलीं, ‘ये डाक्टर सड़क साफ नहीं कर रहे हैं। वे सरकार को बता रहे हैं कि अगर उनकी तनख्वाहें नहीं बढ़ीं तो वे झाड़ू लगाने और जूता-पालिश करने के ओछे काम करेंगे। पढ़े लिखे लोग ऐसे काम करें तो सब की आत्मा को क्लेश तो होगा न!’

सुनकर सरिता का मुँह उतर गया। एक क्षण रुककर बोली, ‘तो क्या झाड़ू लगाना ओछा काम है?’

मिसेज़ वर्मा ने जवाब दिया, ‘पढ़े लिखे लोग ऐसइ सोचते हैं। इसीलिए सफाई और पालिश करनेवाले को सोसाइटी में कोई इज्ज़त नहीं देता।’

सरिता को छोटी सी उम्र में नया ज्ञान मिला। घर की तरफ चलते चलते उसने ईश्वर से प्रार्थना की, ‘भगवान, मुझे जल्दी इतना पढ़ा लिखा दो कि मुझे झाड़ू-पोंछा न करना पड़े।’

फिर उसने सारे समाज का भला सोचते हुए अपनी प्रार्थना में सुधार किया—-‘भगवान, कुछ ऐसा करो कि किसी को झाड़ू-पोंछा और जूता-पालिश न करना पड़े।’

© कुन्दन सिंह परिहार
जबलपुर (म. प्र.)
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