प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित एक भावप्रवण रचना – “क्योंकि परम्परागत सब प्यार खो गया है” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ ‘स्वयं प्रभा’ से – “तरुणों का दायित्व” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
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सँवर सजकर के बचपन ही बना करता जवानी है।
जवानी ही लिखा करती वतन की नई कहानी है ॥
भरे इतिहास के पन्ने, जवानी की खानी से
है गाथायें कई जो दमकती यौवन के पानी से।
परिस्थितियाँ बदल दी हैं जवानी ने जमाने की
अनेकों हैं मिसालें, हारते को भी जिताने की।
हुये कई वीर जिनकी कथा हर मन को जगाती है
कहानी जिन्दगी की जिनकी नई आशायें लाती है। 1
महाराणा प्रताप, रणजीत, गुरूगोविंद, शिवाजी ने
किये जो कारनामे क्या कभी मन से पढ़ा हमने ?
उन्हें पढ़, भाव श्रद्धा से है झुकता सिर जवानी का
नमन करते हैं सब उनको औं उनकी हर कहानी का।
जो बच्चे आज हैं, वे ही वतन के हैं युवा कल के
उन्हें ही देश का नेतृत्व करना दो कदम चल के।
समझता है उन्हें दायित्व अपना सावधानी से
वतन, परिवार, घर को वे सहारा दें जवानी से ।
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© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
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मो. 9425484452
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈