हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संवाद # 84 ☆ प्रेम ना जाने कोय ☆ डॉ. ऋचा शर्मा

डॉ. ऋचा शर्मा

(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में  अवश्य मिली है  किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं। आप ई-अभिव्यक्ति में  प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है परंपरा और वास्तविकता के संघर्ष  पर आधारित मनोवैज्ञानिक लघुकथा ‘प्रेम ना जाने कोय’. डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को इस विचारणीय लघुकथा रचने  के लिए सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद  # 84 ☆

☆ लघुकथा – प्रेम ना जाने कोय ☆

शादी के लिए दो साल से कितनी लडकियां दिखा चुकी हूँ पर तुझे कोई पसंद ही नहीं आती। आखिर कैसी लडकी चाहता है तू, बता तो।

मुझे कोई लडकी अच्छी नहीं लगती। मैं क्या करूँ? मैंने आपको कितनी बार कहा  है कि मुझे लडकी देखने जाना ही नहीं है पर आप लोग मेरी बात ही नहीं सुनते।

तुझे कोई लडकी पसंद हो तो बता दे, हम उससे कर देंगे तेरी शादी।

नहीं, मुझे कोई लडकी पसंद नहीं है।

अरे! तो क्या लडके से शादी करेगा? माँ ने झुंझलाते हुए कहा।

हाँ – उसने शांत भाव से उत्तर दिया।

क्या??? माँ को झटका लगा, फिर सँभलते हुए बोली – मजाक कर रहा है ना तू?  

नहीं, मैं सच कह रहा हूँ। मैं विकास से प्रेम करता हूँ और उसी से शादी करूंगा।

माँ चक्कर खाकर गिरने को ही थी कि पिता जी ने पकड लिया।

क्यों परेशान कर रहा है माँ को –  पिता ने डाँटा।

माँ रोती हुई बोली – कब से सपने देख रही थी कि सुंदर सी बहू आएगी घर में, वंश  बढेगा अपना और इसे देखो कैसी ऊल जलूल बातें कर रहा है। पागल हो गया है क्या? लडका होकर तू लडके से प्यार कैसे कर सकता है? उससे शादी कैसे कर सकता है?  बोलते – बोलते वह सिर पकडकर बैठ गई।

क्यों नहीं कर सकता माँ? लडका इंसान नहीं है क्या? और प्यार शरीर से थोडे ही होता है। वह तो मन का भाव है, भावना है। किसी से भी हो सकता है।

माँ हकबकाई सी बेटे को देख रही थी।  उसकी बातें माँ के पल्ले  ही नहीं पड रही थीं।

अब तो समझो मयंक की माँ ! कब तक नकारोगी इस सच को?

परंपरा और वास्तविकता का संघर्ष जारी है —  

 

© डॉ. ऋचा शर्मा

अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर.

122/1 अ, सुखकर्ता कॉलोनी, (रेलवे ब्रिज के पास) कायनेटिक चौक, अहमदनगर (महा.) – 414005

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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈