(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका पारिवारिक जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं।
आज प्रस्तुत है परबंत सिंह मैहरी जी की पुस्तक “लेखन कला” की समीक्षा।
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 105 – “लेखन कला” – परबंत सिंह मैहरी ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆
पुस्तक चर्चा
पुस्तक – लेखन कला
लेखक.. परबंत सिंह मैहरी, हावडा
पृष्ठ १३२, मूल्य ३००, पेपर बैक
प्रकाशक.. रवीना प्रकाशन गंगा नगर दिल्ली ९४
हिन्दी साहित्य के सहज, शीघ्र प्रकाशन के क्षेत्र में रवीना प्रकाशन एक महत्वपूर्ण नाम बनकर पिछले कुछ समय में ही उभर कर सामने आया है. लगभग हर माह यह प्रकाशन २० से २५ विभिन्न विषयो की, विभिन्न विधाओ की, देश के विभिन्न क्षेत्रो से नवोदित तथा सुस्थापित लेखको व कवियों की किताबें लगातार प्रकाशित कर चर्चा में है. रवीना प्रकाशन से ही हाल ही चर्चित पुस्तक लेखन कला प्रकाशित हुई है. यह पुस्तक क्या है, गागर में सागर है.
आज लोगों में विशेष रूप से युवाओ में प्रत्येक क्षेत्र में इंस्टेंट उपलब्धि की चाहत है. नवोदित लेखको की सबसे बड़ी जो कमी परिलक्षित हो रही है वह है उनकी न पढ़ने की आदत. वे किसी दूसरे का लिखा अध्ययन नही करना चाहते पर स्वयं लिक्खाड़ बनकर फटाफट स्थापित होने की आशा रखते दिखते हैं. परबंत सिंह मैहरी स्वयं एक वरिष्ठ लेखक, पत्रकार व संपादक हैं. उन्होने अपने सुदीर्घ अनुभव से लेखन कला सीखी है. बड़ी ही सहजता से, सरल भाषा में, उदाहरणो से समझाते हुये उन्होने प्रस्तुत पुस्तक में अभिव्यक्ति की विभिन्न विधाओ कहानी,लघुकथा, उपन्यास, निबंध, हास्य, व्यंग्य, रिपोर्टिंग, संस्मरण, पर्यटन, फीचर, आत्मकथा, जीवनी, साक्षात्कार,नाटक, कविता, गजल, अनुवाद आदि लगभग लेखन की प्रत्येक विधा पर सारगर्भित दृष्टि दी है.
मैं वर्षो से हिन्दी का निरंतर पाठक, लेखक, समीक्षक व कवि हूं. किन्तु किसी एक किताब में इस तरह का संपूर्ण समावेश मुझे अब तक कभी पढ़ने नही मिला. यद्यपि इस तरह के स्फुट लेख कन्ही पत्र पत्रिकाओ में यदा कदा पढ़ने मिले पर जिस समग्रता से सारी विषय वस्तु को एक नये रचनाकार के लिये इस पुस्तक में संजोया गया है, उसके लिये निश्चित ही लेखक व प्रकाशक के प्रति हिन्दी जगत ॠणी रहेगा.
निश्चित ही स्वसंपादित सोशल मीडीया ने भावनाओ की लिखित अभिव्यक्ति के नये द्वार खोले हैं, जिससे नवोदित रचनाकारो की बाढ़ है. हर पढ़ा लिखा स्वयं को लेखक कवि के रूप में स्थापित करता दिखता है, किंतु मार्गदर्शन व अनुभव के अभाव में उनकी रचनाओ में वह पैनापन नही दिखता कि वे रचनायें शाश्वत या दीर्घ जीवी बन सकें. ऐसे समय में इस पुस्तक की उपयोगिता व प्रासंगिकता स्पष्ट है.
चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’, भोपाल
ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३
मो ७०००३७५७९८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈