प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित एक भावप्रवण ग़ज़ल “याद ”। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। )
☆ काव्य धारा 67 ☆ गजल – ’याद’ ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
तुम्हारे सँग बिताया जब जमाना याद आता है
तो आँसू भरी आँखों में विकल मन डूब जाता है।
बड़ी मुश्किल से नये-नये सोच औ’ चिन्ता की उलझन से
अनेकों वेदनाओं की चुभन से उबर पाता है।
न जाने कौन सी गल्ती हुई कि छोड़ गई हमको
इसी संवाद में रत मन को दुख तब काटे खाता है।
अचानक तुम्हारी तैयारी जो यात्रा के लिये हो गई
इसी की जब भी आती याद, मन आँसू बहाता है।
अकेले अब तुम्हारे बिन मेरा मन भड़ भड़ाता है।
अँधेरी रातों में जब भी तुम्हें सपनों में पाता हूँ
तो मन यह मौन रो लेता या कुछ-कुछ बड़बड़ाता है।
कभी कुछ सोचें करने और होने लगता है कुछ और
तुम्हारे बिन, अकेले तो न कुछ भी अब सुहाता है।
अचानक तेवहारों में तुम्हारी याद आती है
उमड़ती भावनाओं में न बोला कुछ भी जाता है।
बड़ी मुश्किल से आये थे वे दिन खुष साथ रहने के
तो था कब पता यह भाग्य कब किसकों रूलाता है।
है अब तो शेष, आँसू, यादें औ’ दिन काटना आगे
अंदेशा कल का रह-रह आ मुझे अक्सर सताता है।
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी भोपाल ४६२०२३
मो. 9425484452
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈