श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

 

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी की लघुकथाएं शृंखला में आज प्रस्तुत हैं उनकी एक अतिसुन्दर लघुकथा “जीवन साथी”।  श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ़ जी  ने  इस लघुकथा के माध्यम से  एक सन्देश दिया है कि –  पति पत्नी अपने परिवार के दो पहियों की भाँति होते हैं ।  यदि वे  मात्र आपने परिवार ही नहीं अपितु एक दूसरे के परिवार का भी ध्यान रखें तो जीवन कितना सुखद हो सकता है।  ) 

 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी की लघुकथाएं # 18 ☆

 

☆  जीवन साथी ☆

 

जीवनसाथी कहते ही मन प्रसन्न हो जाता है।  दोनों परिवार वाले और पति पत्नी का साथ सुखमय होता है। ऐसे ही ममता और विनोद की जोड़ी बहुत ही सुंदर जोड़ी। ममता अपने गांव से पढ़ी लिखी थी और विनोद एक इंजीनियर।

ममता के घर खेती बाड़ी का काम होता था। भाई भी ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे। सभी खेती किसानी में लगे थे परंतु सभी खुशहाल थे। ममता के पिताजी यदा-कदा ममता के यहां शहर आना-जाना करते थे। ममता को अपने ससुराल में सभी के साथ घुल मिल कर रहता देख पिताजी खुश हो जाते थे। बात उन दिनों की है जब स्मार्टफोन का प्रचलन शुरू हुआ था।

गांव में भी किसी किसी के पास फोन हुआ करता था परंतु ममता के मायके में फोन अभी तक नहीं आया था। कुछ दिनों बाद ममता के भाइयों ने स्मार्ट फोन ले लिया परंतु पिताजी को नहीं देते थे। उनका भी मन होता था फोन के लिए। एक दिन शहर आए थे ममता के घर बड़े ही उदास मन से बेटी से बात कह रहे थे कि उनका भी मन फोन लेने को होता है परंतु अभी पैसे नहीं हो पा रहे हैं दूसरे कमरे से विनोद चुपचाप पिताजी और ममता की बात सुन रहे थे।  अपने समय पर वह ऑफिस निकल गए। ममता पिता जी की बातों से दुखी थी। दिन भर अनमने ढंग से काम कर रही थी।

शाम होते ही विनोद ऑफिस से घर आए। चाय बनाकर ममता ले आई पिताजी साथ में बैठे थे। विनोद ने बैग से पैकेट निकाल पिताजी को देते हुए कहा-  पिताजी आपके लिए। ममता आश्चर्य से देखती रह गई उनके हाथ में स्मार्टफोन का डिब्बा था। ममता की आंखों से आंसू निकल आए। पिताजी भी कुछ ना बोल सके खुशी से विनोद को गले लगा लिया।

ममता दूसरे कमरे में चली गई विनोद ने जाकर कंधे पर हाथ रख कर कहा कि क्या तुम्हारे पिताजी के लिए मैं इतना भी नहीं कर सकता। तुम दिन भर मेरे घर परिवार की देख भाल करती हो आखिर वह भी हमारे पिताजी हैं।

इतना समझने वाला जीवन साथी पाकर ममता बहुत खुश है। ईश्वर से बार-बार प्रार्थना करती रही सुखमय जीवन के लिए और विनोद जैसा जीवन साथी पाने के लिए।

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments