प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित एक भावप्रवण ग़ज़ल “माहौल देखकर के बेचैन मन बहुत है”। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। )
☆ काव्य धारा 68 ☆ गजल – ’माहौल देखकर के बेचैन मन बहुत है’ ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
खबरें सुनाती हर दिन आँसू भरी कथायें
दुख-दर्द भरी दुनियाँ, जायें तो कहाँ जायें ?
बढ़ती ही जा रही है संसार में बुराई
चल रही तेज आँधी हम सिर कहाँ छुपायें ?
उफना रही है बेढब बेइमानियों की नदियॉ
ईमानदारी डूबी, कैसे उसे बचायें ?
सद्भाव, प्रेम, ममता दिखती नहीं कहीं भी
है तेज आज जग में विद्वेष की हवायें।
है जो जहाँ भी, अपनी ढपली बजा रहा है
लगी आग है भयानक, जल रहीं सब दिशाएं।
दिखता न कहीं कोई सच्चाई का सहारा
अब सोचना जरूरी कैसे हो कम व्यथायें।
सब धर्म कहते आये है, प्रेम में भलाई
पर लोगों ने किया जो किसकों व्यथा सुनायें ?
बीता समय कभी भी वापस नहीं है आता
सीखा न पर किसी ने कि समय न गँवायें।
माहौल देखकर के बेचैन मन बहुत है
कैसे ’विदग्ध’ ऐसे में, चैन कहाँ पायें ?
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी भोपाल ४६२०२३
मो. 9425484452
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈