आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि। संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित ‘सॉनेट – रस’।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 80 ☆
☆ सॉनेट – चुनाव ☆
लबरों झूठों के दिन आए।
छोटे कद, वादे हैं ऊँचे।
बातें कड़वी, जहर उलीचे।।
प्रभु ये दिन फिर मत दिखलाए।।
फूटी आँख न सुहा रहे हैं।
कीचड़ औरों पर उछालते।
स्वार्थ हेतु करते बगावतें।।
निज औकातें बता रहे हैं।।
केर-बेर का संग हो रहा।
सुधरो, जन धैर्य खो रहा।
भाग्य देश का हाय सो रहा।।
नाग-साँप हैं, किसको चुन लें?
सोच-सोच अपना सिर धुन लें।
जन जागे, नव सपने बुन ले।।
© आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
१३-२-२०२२
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