(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका पारिवारिक जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं।
आज प्रस्तुत है सुश्री सुषमा व्यास राजनिधि जी की पुस्तक “परमानंदम्” की समीक्षा।
पुस्तक चर्चा
पुस्तक चर्चा
कृति… परमानंदम्
लेखिका… सुषमा व्यास राजनिधि
संस्मय प्रकाशन, इंदौर
ISBN 978-81-952641-3-1
पृष्ठ 48
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 109 ☆
☆ “परमानंदम्” – सुश्री सुषमा व्यास राजनिधि ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆
आध्यात्म को बड़ा गूढ़ विषय समझे जाने की भ्रांति है.
रिटायरमेंट के बाद ही धर्म आध्यात्म के लिये समय दिये जाने की परम्परा है.
लम्बे लम्बे गंभीर प्रवचन आध्यात्मिक उन्नयन के लिये जरूरी माने जाते हैं. किंतु वास्तव में ऐसा है नहीं. सुषमा व्यास राजनिधि की कृति परमानंदम् पढ़िये, उनके छोटे छोटे आलेख, आपमें आध्यात्मिकता के प्रति लगाव पैदा कर देंगे. गुरु के प्रति आपमें समर्पण जगा देंगे. इन दिनों धर्म सार्वजनिक शक्ति प्रदर्शन का संसाधन बनाकर राजनैतिक रूप से प्रस्तुत किया जा रहा है. जबकि वास्तव में धर्म नितांत व्यक्तिगत साधना है. यह वह मार्ग है जो हमारे व्यक्तित्व को इस तरह निखारता है कि हमारा मन, चित्त परम शांति का अनुभव कर पाता है. ईश्वरीय परम सत्ता किसी फ्रेम में बंधी फोटो या जयकारे से बहुत परे वह शिखर नाद है जिसकी ध्वनि मन ही कह सकता है और मन ही सुन सकता है. परमानंद अभिव्यक्ति कम और अनुभूति अधिक है. सुषमा व्यास राजनिधि ने नितांत सरल शब्दों में गूढ़ कथ्य न्यूनतम विस्तार से लिख डाली है. जिनकी व्याख्या पाठक असीम की सीमा तक अनुभव कर सकता है. वे नर्मदा को अपनी सखी मानती हैं. रेवासखि में यही भाव अभिव्यक्त होते हैं. भगवान श्रीकृष्ण और श्रीमद्भगवतगीता, आधुनिक युग में राम और रामायण की महत्ता, श्रीमद् देवी भागवत पुराण, युवा वर्ग में धार्मिक ग्रंथो के प्रति अरुचि, उनका आलेख है, दरअसल हमारे सारे धार्मिक पौराणिक ग्रंथ संस्कृत में हैं, और आज अंग्रेजी माध्यम में पढ़ने वाले सारे युवा संस्कृत ही नही जानते. इसीलिये मेरे पिता प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव जी ने भगवतगीता, रघुवंश, भ्रमरगीत, दैनंदिनी पूजन श्लोक आदि का हिन्दी काव्यगत अनुवाद किया है, जिससे युवा पीढ़ी इन महान ग्रंथो को पढ़ समझ व उनका मनन कर सके. और इन वैश्विक ग्रंथो के प्रति युवाओ में रुचि जाग सके. धार्मिक ग्रंथो में नारी पात्र, प्रसिद्ध मंदिर रणजीत बाबा हनुमान की महिमा, सृष्टि के सबसे दयालु संत, गोस्वामी तुलसीदास के ग्रंथो में राम का स्वरूप, कृष्ण चिंतन तथा अंधकार में उगता सूरज जैसे विषयों पर सारगर्भित लेखों का संग्रह किताब में है.
पुस्तक पढ़ने समझने गुनने लायक है.
चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈