डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 78 – दोहे
पाषाणों पर फूल हैं, फूलों में रस गंध।
हमें प्रेरणा दे रहे, रच लो नेह निबंध।।
गिरते पड़ते चढ गए, विजित हुई चट्टान।
वानर नर को दे रहे, अपना संचित ज्ञान।।
पाषाणों की गोष्ठी चर्चा में प्रस्ताव ।
क्या मानव अब हो गया, धधका हुआ अलाव।।
शीला संतुलन सिखाती, हमको जीवन योग।
अपनाकर तो देखिए ‘सम्यक’ योग प्रयोग।।
© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
बेहतरीन अभिव्यक्ति