हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ # 4 – विशाखा की नज़र से ☆ गौरैया और बिटिया  ☆ – श्रीमति विशाखा मुलमुले

श्रीमति विशाखा मुलमुले 

 

(हम श्रीमती  विशाखा मुलमुले जी  के  ह्रदय से आभारी हैं  जिन्होंने  ई-अभिव्यक्ति  के लिए  “साप्ताहिक स्तम्भ – विशाखा की नज़र से” लिखने हेतु अपनी सहमति प्रदान की. आप कविताएँ, गीत, लघुकथाएं लिखती हैं। आपकी रचनाएँ कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती  रहती हैं.  आपकी कविताओं का पंजाबी एवं मराठी में भी अनुवाद हो चुका है।  आज प्रस्तुत है उनकी रचना गौरैया और बिटिया .  अब आप प्रत्येक रविवार को श्रीमती विशाखा मुलमुले जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे. )

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 4  – विशाखा की नज़र से

 

☆  गौरैया और बिटिया  ☆

 

बहुत से बहुत कितना दूर तक देख पाती होगी गौरैया,

प्रयोजन से बिखराये दानों और उसके पीछे

शिकारी की मंशा

क्या देख पाती होगी ?

 

कितनी दूर तक जा पाती होगी चहक,

उस नन्हीं सी गौरैया की

बहुत से बहुत आस – पास के अपने साथी समूह तक

केवल वे ही समझ पाते होंगे

जाल में फँसने पर उसकी फड़फड़ाहट

और पुकार को ।

 

हमारी जात की भी नन्हीं गौरैया,

कहाँ देख पाती है,

पहचाने, अनजाने, रिश्तेदारी शिकारी को

और कुछ लुभावने / डरावने जाल में फंस  जाती है ।

आश्चर्य यह कि,

इंद्रियों से परिपूर्ण हमारी देह

समझ नहीं पाती,

शिकार होने पर सहसा बदली सी उसकी

चहचहाहट , फड़फड़ाहट और मौन प्रश्न को !

 

© विशाखा मुलमुले  

पुणे, महाराष्ट्र