प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित एक भावप्रवण ग़ज़ल “कला और गुण की बहुत कम है कीमत”। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। )
☆ काव्य धारा 72 ☆ गजल – ’’कला और गुण की बहुत कम है कीमत’’ ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
जो देखा औ’ समझा, सुना और जाना
किसे कहें अपना औ’ किसको बेगाना।
यहाँ कोई दिखता नहीं है किसी का
अधिकतर है धन का ही साथी जमाना।
कला और गुण की बहुत कम है कीमत
जगत ने है धन को ही भगवान माना।
धनी में ही दिखते है गुण योग्यतायें
सहज है उन्हें सब जगह मान पाना।
गरीबों की दुनियाँ में हैं विवशताएँ
अलग उनके जीवन का है ताना-बाना।
उन्हें जरूरत तक को पैसे नहीं हैं
धनी खोजते खर्च का कोई बहाना।
है जनतंत्र में कुछ नये मूल्य विकसे
बड़ा वह जिसे आता बातें बनाना।
सदाचार दुबका है चेहरा छुपायें
दुराचार ने सीखा फोटो छपाना।
विजय काँटों को हर जगह मिल रही है
सही न्याय युग गया हो अब पुराना।
सही क्या, गलत क्या ये कहना कठिन है
न जाने कहाँ जा रहा है जमाना।
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी भोपाल ४६२०२३
मो. 9425484452
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈