डॉ. ऋचा शर्मा
(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में अवश्य मिली है किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं। आप ई-अभिव्यक्ति में प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है एक संवेदनशील लघुकथा ‘पौध संवेदनहीनता की’. डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को इस ऐतिहासिक लघुकथा रचने के लिए सादर नमन।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद # 89 ☆
☆ लघुकथा – पौध संवेदनहीनता की ☆
सरकारी आदेश पर वृक्षारोपण हो रहा था। बड़ी तादाद में गड्ढ़े खोदकर पौधे लगाए जा रहे थे । बड़े अधिकारियों ने मुस्कुराते हुए फोटो खिंचवाई। इसके बाद उन पौधों का क्या होगा? उसे इन सरकारी बातों का पता ना था। उसने तो पिता को फल खाकर उनके बीज सुखाकर इक्ठ्ठा करते देखा था। बस से कहीं जाते समय सड़क के किनारे की खाली जमीन में वे बीज फेंकते जाते। उनका विश्वास था कि ये बीज जमीन पाकर फूलें – फलेंगे। बचपन में पिता के कहने पर बस में सफर करते समय उसने भी कई बार खिड़की से बीज उछालकर फेंके थे। आज वह भी यही करता है, उसके बच्चे देखते रहते हैं।
सफर पूराकर वह पहुँचता है महानगर के एक फलैट में जहाँ उसकी माँ अकेले रह रही है। सर्टिफाईड कंपनी की कामवाली महिला और नर्स माँ की देखभाल के लिए रख दी है। बिस्तर पर पड़े – पड़े माँ के शरीर में घाव हो गए हैं। बीमारी और अकेलेपन के कारण वह चिड़चिड़ी होती जा रही है। बूढ़ी माँ की आंखें आस-पास कोई पहचाना चेहरा ढूंढती हैं। मोबाईल युग में सब कुछ मुठ्ठी में है। दूर से ही सब मैनेज हो जाता है। कामवाली महिला वीडियो कॉल से माँ को बेटे – बहू के दर्शन करा देती है। सब कैमरे से ही हाथ हिला देते थे, माँ तरसती रह जाती। वह समझ ही नहीं पाती यह मायाजाल। अचानक कैसे बेटा दिखने लगा और फिर कहाँ गायब हो गया? बात खत्म होने के बाद भी वह बड़ी देर फोन हाथ में लिए उलट- पुलटकर देखती रहती है। माँ चाहती है दो बेटे – बहुओं में से कोई तो रहे उसके पास, कोई तो आए ।
माँ से मिलकर वह निकल लिया काम निपटाने के लिए। एक काम तो निपट ही गया था। पिता पेड़ – पौधों के लिए बीज डालना तो सिखा गए थे पर लगे हुए पेड़ों को खाद पानी देना नहीं सिखा पाए। अनजाने में वह भी अपने बच्चों को संवेदनहीनता की पौध थमा रहा था?
© डॉ. ऋचा शर्मा
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