श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय एवं भावप्रवण कविता “# पानी #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 75 ☆

☆ # पानी # ☆ 

कैसी प्रखर धूप

तप रही है

व्याकुल हुई जवानी है

प्यासी प्यासी भटक रही है

ढूंढ रही वो पानी है

 

पानी तो अनमोल है

कूआं कितना गहरा

कितना खोल है

जो है प्यासा, उससे पूछो

पानी का क्या मोल है?

 

हर कोई ढूंढें ठंडा पानी

मटके पर है आई जवानी

मिटटी का कण कण

धन्य हो गया

इस पानी की

दुनिया है दिवानी

 

पशु, पक्षी संग

प्यासे तरूवर

चिड़िया, गोरैयां

दौड़े घर घर

सकोरा में भरा हो

अगर ठंडा जल

तो तृप्त हो जायेंगे

सारे थलचर

 

हिमखंड सारे

पिघल रहे हैं

बाढ में सब कुछ

निगल रहें हैं

कहीं बाढ़ तो

कहीं हैं सूखा

कुदरत के खेल

पल पल बदल रहे हैं

 

गांव में जिसने कुंआ खोदा

वो पानी से वंचित हैं

जिनके घर में कुंआ खोदा

वो पानी से सिंचित हैं

जात पात के भेदभाव में

मानवधर्म हुआ खंडित है

 

हमें जल की बर्बादी रोकना होगा

वर्षा का जल

धरती को सोखना होगा

पानी के लिए

ना हो जाए अगला महायुद्ध

भाई, नासमझों को टोकना होगा /

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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