(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है। )
आज प्रस्तुत है एक विचारणीय आलेख पाठक मंच देश में अपने तरह की अभिन्न योजना।
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 152 ☆
आलेख – पाठक मंच देश में अपने तरह की अभिन्न योजना
साहित्य अकादमी की पाठक मंच योजना देश में अपने तरह से अभिन्न है. हमें इसके साथ जुड़े होने और पुस्तक संस्कृति के विस्तार में किंचित योगदान का जो अवसर पाठक मंच के माध्यम से मिल रहा है, उस पर मुझे गर्व है. पाठक मंच प्रदेश के प्रत्येक अंचल में साहित्य अकादमी की प्रतिनिधि इकाई के रूप में,एक सृजनात्मक संस्था के रूप में सक्रिय हैं. समकालीन चर्चित व महत्वपूर्ण किताबो पर प्रदेश के पाठको तथा लेखको को वैचारिक अभिव्यक्ति का सुअवसर पाठक मंच के माध्यम से सुलभ है. मण्डला में और अब जबलपुर में पाठक मंच से जुड़े अपने अनुभवो के आधार पर मै पाठक मंचो को लेकर कुछ बिन्दु आपके माध्यम से साक्षात्कार के पाठको से बांटना चाहता हूं
१ प्रकाशको से पुस्तक प्राप्ति में विलंब
अनेक किताबें प्रकाशक अप्रत्याशित विलंब से भेजते हैं, जिससे निर्धारित माह में गोष्ठी संपन्न नही हो पाती.
२ पठनीयता का अभाव
अनेक पाठक पुस्तक तो पढ़ने हेतु ले लेते हैं, पर जब उनसे निर्धारित अवधि में किताब वापस मांगी जाती है, तो वे उसे पूरा न पढ़ पाने की बात कहते हैं, समीक्षा लिखित रूप में प्राप्त कर पाना अत्यधिक दुष्कर कार्य होता है. यद्यपि नये पाठक, छात्र व कुछ समर्पित साहित्यिक अभिरुचि के लोग इसमें पूरा सहयोग भी करते हैं.
३ स्थानीय गुटबंदी
साहित्य समाज में स्थानीय गुटबंदी एक मनोवैज्ञानिक विश्लेषण का विषय है, प्रायः इसके चलते पाठक मंच गोष्ठी भी इससे प्रभावित होती है, इससे बचने के लिये पाठक मंच संयोजक को उदारमना व गुटनिरपेक्ष रहकर अपनी भूमिका स्वयं निर्धारित करनी होती है. मैने इससे बचने के लिये हर गोष्ठी एक अलग स्थान पर,जैसे पुस्तकालयो में, शालाओ व महाविद्यालयो में, क्लबो में, अलग अलग लोगो के बीच करने की नीति अपनाई इस तरह के संयुक्त आयोजनो के सुपरिणाम भी परिलक्षित हुये, किंतु “मैं सबका पर मेरा कौन ?” वाला अनुभव अवांछनीय भी रहा.
४ गोष्ठी रपट का प्रकाशन एवं गोष्ठी में महत्व
साक्षात्कार में गोष्ठी रपट का प्रकाशन बहुत लंबे समय के बाद हो पाता है, स्थानीय अखबारो में गोष्ठी रपट का प्रकाशन केंद्र संयोजक के स्वयं के कौशल पर ही निर्भर है. अनेक पाठक गोष्ठी में इसलिये भी हिस्सेदारी करते हैं कि प्रतिसाद में वे मीडिया में स्वयं को देखना चाहते हैं. साथ ही वे चाहते हैं कि साक्षात्कार व साहित्य अकादमी के प्रकाशनो, व अन्य आयोजनो से महत्वपूर्ण तरीके से जुड़ सकें. मैं पाठको की इस भावना की पूर्ति हेतु गोष्ठी को दो चरणो में रखने का यत्न करता हूं, पहले चरण में पाठक मंच की पुस्तक पर समीक्षा तथा द्वितीय चरण में काव्य पाठ या स्थानीय किताब पर चर्चा के आयोजन से व्यापक जुड़ाव लोगो में देखने को मिलता है.
५ पाठक मंच को एक सृजनात्मक स्थानीय संस्था के रूप में स्थापित करना
केंद्र संयोजक अपनी व्यक्तिगत सक्रियता से पाठक मंच को एक सृजनात्मक स्थानीय संस्था के रूप में स्थापित कर सकता है, जो निर्धारित किताबो पर चर्चा के सिवाय भी विभिन्न रचनात्मक साहित्यिक गतिविधियो में अपनी भूमिका निभा सकती है.
सुझाव
० संयोजको द्वारा प्रेषित स्थानीय रचनाकारो की रचनाओ को साक्षात्कार में एक स्तंभ बनाकर प्रकाशन,
० संयोजको को अकादमी की मेलिंग लिस्ट में स्थाई रूप से जोड़कर अकादमी के विभिन्न आयोजनो की सूचना और आमंत्रण पत्र भेजना
० किताबो की प्रतियां बढ़ाना, यूं इस वर्ष से ३ प्रतियां आ रही हैं जो पर्याप्त लगती हैं
० पाठक मंच की समीक्षाओ व संयोजको की रचनाओ के संग्रह पर आधारित पुस्तक का प्रकाशन
आदि अनेक प्रयास संभव हैं, जिनसे अकादमी की अवैतनिक प्रतिनिधि संस्था के रूप में पाठक मंच और भी क्रियाशील होंगे तथा यह योजना और सफल हो सकेगी.
© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
मो ७०००३७५७९८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈