(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका पारिवारिक जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं।
आज प्रस्तुत है स्व.भवानी प्रसाद मिश्र जी की पुस्तक “कुछ नीति कुछ राजनीति” की समीक्षा।
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 109 ☆
☆ “कुछ नीति कुछ राजनीति” … स्व.भवानी प्रसाद मिश्र ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆
कुछ नीति कुछ राजनीति
लेखक स्व.भवानी प्रसाद मिश्र
प्रति श्रुति प्रकाशन कोलकाता
मूल्य 280/- , पृष्ठ 128
भवानी प्रसाद मिश्र के 17 काव्य संग्रह प्रकाशित हुए थे। उनकी पहचान एक कवि के रूप में ही हिंदी जगत में की जाती है।
वे वर्धा के महिला आश्रम में शिक्षक के रूप में कार्य कर चुके थे और उन्हें गांधी जी का सानिध्य मिला था। वह बहुत अच्छे अध्येता भी थे.. उन्होंने फ्रेडरिक केनियान, जेम्स कजंस, पी सोरोकिन जैसे अंग्रेज विचारकों की संस्कृति समाज को लेकर रची गई किताबें पढ़ी और भारतीय परिदृश्य में गांधीवाद के विचारों के साथ उनकी विवेचना भी की। अनेक सभ्यताओं जैसे बेबिलोनिया, मेंसेपोटमिया की संस्कृति समय केे साथ मिट गई। कितु, भारत की संस्कृति अनेकों बदलाव के बीच अपनी मूल प्रवृत्ति को संभाले रही और विकसित होती रही। भारतीय दर्शन स्नेह, करुणा, विश्व मैत्री का रहा है जबकि पाश्चात्य दर्शन सुख सुविधाओं का रहा है .. समाजवाद के दर्शन ने वर्ग विहीन समाज की कल्पना की व इसके लिए खोजों के आधार पर अपने विचारों को दूसरे पर प्रभुत्व से स्थापित करने के लिए विनाशकारी शस्त्रों का निर्माण किया।
दुनिया के देशों को बाजार बनाया गया। संसार में अपने तथाकथित धर्म इस्लाम या ईसाई धर्म को एकमात्र विचार की तरफ फैलाने के प्रयास हो रहे हैं। हम आज सारे संसार में सब कुछ भूलकर सुविधाएं जुटाने और उन्हें अपने लिए छीनने की जो दौड़ देख रहे हैं वह इंद्रीय प्रधान पाश्चात्य मूल्यों की देन है। आज की हमारी संस्कृति का मुख्य स्वर पारलौकिक, धार्मिक, नैतिक और सर्व हितकारी ना होकर इह लौकिक कथित धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक और स्वार्थ परक हो गया है। कुछ नीति कुछ राजनीति पुस्तक में संग्रहित लेख इस विडंबना का निदान और उपचार प्रस्तुत करने का प्रयत्न करते हैं। इन लेखों को पढ़कर लगता है कि भवानी दादा एक बहुत अच्छे विचारक और दार्शनिक भी थे।
गांधी, टालस्टाय, अहिंसा, सर्वोदय, लोकतंत्र, की विशद एवं सुन्दर व्याख्या किताब में पढ़ने को मिली।
गाँधी की परिकल्पना का भारत उस से बिल्कुल भिन्न था जिस गांधी का उपयोग आज भारत की राजनीति मे किया जा रहा है। गांधी को समझने के लिए यह किताब पढ़ने की जरुरत है।
चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३
मो ७०००३७५७९८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈