श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं में आज प्रस्तुत है एक सार्थक एवं विचारणीय रचना “अवसरवादी व्यवस्था…”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन।
आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 101 ☆
☆ अवसरवादी व्यवस्था… ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ ☆
दूसरे के परिश्रम को छीन कर जब हम आगे बढ़ते हैं तभी से सीखने की प्रक्रिया रुकने लगती है। हमारा सारा ध्यान चोरी की मानसिकता व सत्य को झुठलाने की ओर मुड़ जाता है। देर सबेर जब आँख खुलती है तो पता चलता है कि हमारी कुर्सी खतरे में है। उपेक्षित होकर रहने से बेहतर है कि दूसरी जगह जाकर उनकी जी हुजूरी में अपना समय लगाएँ। हो सकता है वहाँ कोई नया अवसर मिले अवसरवादी बनने का।
हर जगह फोटो में छाए रहने वाले रौनक लाल जी इस बार अपनी जगह सुनिश्चित न पाकर सोर्स लगाते हुए उपलब्धियों की सूची गिनाने लगे। तभी एक ने कहा हर बार यही विवरण देने से बात नहीं बनेगी। कुछ नया हो तो बताइए। उन्होंने झट से अखबार की कटिंग सामने रख दी। मजे की बात उसमें भी उनका नाम तो था पर सामान्य सदस्य के रूप में। अब बेचारे फोन उठा कर सम्बंधित व्यक्ति को उसकी भूल बतलाने लगे। तभी उनके सलाहकार ने कहा कोई बात नहीं अब आप दूसरी संस्था की ओर मुड़ जाइये यहाँ न सही वहाँ अध्यक्षीय कुर्सी पर विराजित होकर पेपर में नाम छपवाएँ।
उदास स्वर से रौनक लाल जी कहने लगे,” समय इतनी तेजी से बदलता जा रहा है। पहले जो लोग मेरी आँखों के इशारे से रास्ते बदल देते थे वे भी मुझे सलाह देते हुए कहते हैं कि ज्यादा लालच मत कीजिए। किसी एक संस्था के वफ़ादार बनें। हर जगह अध्यक्ष बनने की कोशिश में आपकी सदस्यता भी भंग हो जाएगी। सम्मान कमाना पड़ता है। कोई प्रेम से बोल दे तो इसका ये मतलब नहीं कि आप हर चीजों का निर्धारण करेंगे।
ऐसा अक्सर देखने में आता है किंतु अब ठहरा डिजिटल युग सो ऑनलाइन ही कार्यक्रम होने लगे हैं। जहाँ कुर्सी का किस्सा कुछ हद तक कमजोर होने लगा है। बस पोस्टर में फोटो हो फिर कोई शिकायत नहीं रहती। अपनी फोटो को देखने में जो आंनद है वो अन्य कहीं नहीं मिलता। सब कुछ मेरे अनुसार हो बस यही समस्या की जड़ है। जड़ उपयोगी है किंतु जड़बुद्धि की मानसिकता रखने वाला व्यक्ति घातक होता है।
मानव जीवन में बहुत से ऐसे पल आते हैं जब ये लगने लगता है कि चेहरे की मासूमियत व मुस्कान अब वापस नहीं आने वाली किन्तु दृढ़ इच्छाशक्ति व संकल्प से सब कुछ जल्दी ही सामान्य होकर पुनः जीवन में नव उत्साह का संचार हो पूर्ववत स्थिति आ जाती है।
मुस्कुराहट से न केवल हम सभी वरन जीव – जंतु भी आकर्षित होते हैं। जब चेहरे में प्रसन्नता झलकती है तो आसपास का परिवेश भी मानो खुशहाली के गीत गुनगुनाने लगता है। अनजाने व्यक्ति से भी एक क्षण में ही लगाव मुस्कुराहट द्वारा ही संभव हो सकता है।
तो आइये देरी किस बात की ईश्वर प्रदत्त इस उपहार को मुक्त हस्त से बाँट कर परिवेश में खुशहाली फैलायें। अवसरवादी बनने हेतु अवसरों की भरमार है बस मुस्कुराते हुए कार्य करने की कला आनी चाहिए।
© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
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