(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है। )
आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण एवं विचारणीय आलेख धर्मनिरपेक्षता मिले तो बताना …. इस आलेख में वर्णित विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं जिन्हें सकारात्मक दृष्टिकोण से लेना चाहिए।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 160 ☆
आलेख – धर्मनिरपेक्षता मिले तो बताना …
देश संविधान से चलता है. न्यायालय का सर्वोपरी विधान संविधान ही है. प्रत्येक अच्छे नागरिक का नैतिक कर्तव्य है कि वह संविधान का परिपालन करे. बचपन से ही मैं अच्छा नागरिक बनना चाहता हूं, पर अब तक तो मैं लाइनो में ही लगा रहा, इसलिये मुझे अच्छा नागरिक बनने का मौका ही नही मिल सका. सुबह सबेरे पानी के लिये नल की लाइन में, मिट्टी तेल के लिये केरोसिन की लाइन में, राशन के लिये लम्बी लाइन में, कभी बस या मेट्रो की कतार में, इलाज के लिये अस्पताल की लाइन में, स्कूल में तो अनुशासन के नाम पर पंक्तिबद्ध रहना ही होता था, बैंक में रुपया जमा करने तक के लिये लाइन, इस या उस टिकिट की लाइन में लगे लगे ही जब अठारह का हुआ और संविधान ने चुपके से मुझे मताधिकार दे दिया तो मैं संविधान के प्रति कृतज्ञता बोध से अभीभूत होकर वोट डालने गया पर वहाँ भी लाइन में खड़े रहना ही पड़ा. मुझे लगा कि लाइन में लगकर बिना झगड़ा किये अपनी पारी का इंतजार करना ही अच्छे नागरिक का कर्तव्य होता है.
वरिष्ट जनो, महिलाओ, विकलांगों को अपने से आगे जाने का अवसर देना तो मानवीय नैतिकता ही है.नियम पूर्वक बने वी आई पी मसलन स्वतंत्रता सेनानी, सेवानिवृत मिलट्री पर्सनल भी सर आंखो पर, कथित जातिगत आरक्षण के चलते बनी आगे बढ़ती कतार को भी सह लेता किन्तु बलात पुलिस वाले के साथ आकर या नेता जी के फोन के साथ कंधे पर सवार नकली वी आई पी मैं बर्दाश्त नही कर पाता, बहस हो जाती . बदलता तो कुछ नहीं, मन खराब हो जाता. घर लौटकर जब अकेले में अपने आप से मिलता तो लगता कि मैं अच्छा नागरिक नही हूं. इसलिये एक अच्छे नागरिक बनने के लिये मैंने संविधान को समझने की योजना बनाई .
संविधान की प्रस्तावना से ज्ञात हुआ कि हमने संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न धर्मनिरपेक्ष समाजवादी लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिये अपना संविधान अपने आप अंगीकृत किया है. अब मेरे लिए यह समझना जरूरी था कि यह धर्मनिरपेक्षता क्या है ? मैं तो कई कई दिन एक बार भी मंदिर नही जाता था. जबकि मेरा सहकर्मी जोसफ प्रत्येक रविवार को नियम से प्रेयर के लिये चर्च जाता था. मेरा अभिन्न मित्र अब्दुल दिन में पाँच बार मस्जिद जाता है. अब्दुल बेबाक आफिस से कार्यालयीन समय में भी नमाज पढ़ने निकल लेता है. उसे कोई कुछ नही कहता. मस्जिद में या चर्च में एक ही धर्मावलंबी नियम पूर्वक तय समय से मिलते हैं, पूजा ध्यान से इतर चर्चायें भी होना अस्वाभाविक नहीं. किसे वोट देना है किसे नही इस पर मौलाना साहब के फतवे जारी होते भी मैंने देखा है. राजनैतिक दलो द्वारा अपने घोषणा पत्र में बाकायदा चुनाव आयोग के संज्ञान में धार्मिक प्रलोभन, नेताओ द्वारा अपने पक्ष में वर्ग विशेष के वोट लेने के लिये सार्वजनिक मंच से घोषणायें, कभी मंदिर न जाने वालों द्वारा एन चुनावी दौरो में मंदिर मंदिर जाना आदि देखकर मैं धर्मनिरपेक्षता को लेकर बहुत कनफ्यूज हो गया.
कभी इस धर्म की तो कभी उस धर्म की रैलियां सड़कों पर देखने मिलती. अनेक अवसरो पर टीवी में बापू की समाधि पर सर्व धर्म प्रार्थना सभा का सरकारी आयोजन मैनें देखा था मुझे लगा कि शायद यही धर्मनिरपेक्षता है. कुछ अच्छी तरह समझने के लिये गूगल बाबा की शरण ली तो, सर्च इंजन ने फटाफट बता दिया कि दुनिया के 43 देशों का कोई न कोई आधिकारिक धर्म है, 27 देशों का धर्म इस्लाम तो 13 का धर्म ईसाईयत है. भारत समेत 106 देश धर्मनिरपेक्ष देश हैं.ऐसा राष्ट्र एक भी नहीं है जिसका धर्म हिन्दू हो. दुनियां की आबादी का लगभग सोलह प्रतिशत हिन्दू धर्मावलंबी हैं. दुनियां का पहला धर्मनिरपेक्ष देश अमेरिका है. इस जानकारी से भी धर्मनिरपेक्षता समझ नही आ रही थी. तो मैंने शाम को टीवी चैनलो पर विद्वानो की बहस और व्हाट्सअप समूहो से कुछ ज्ञानार्जन करने का यत्न किया, पर यह तो बृहद भूलभुलैया थी. सबके अपने अपने एजेण्डे समझ आये पर धर्मनिरपेक्षता समझ नही आई. कुछ कथित बुद्धिजीवी बहुसंख्यकों को रोज नए पाठ पढ़ाते,उनके अनुसार बहुसंख्यकों को दबाना ही धर्म निरपेक्षता है। मुझे स्पष्ट समझ आ रहा था की यह तो कतई धर्म निरपेक्षता नही है ।अंततोगत्वा मैं धर्मनिरपेक्षता की तलाश में देशाटन पर निकल पड़ा. बंगलौर रेल्वे स्टेशन के वेटिंग रूम में मस्जिद नुमा तब्दीली मिली, मुम्बई के एक रेल्वे प्लेटफार्म पर भव्य मजार के दर्शन हुये, सड़क किनारे सरकारी जमीन पर ढ़ेरों छोटे बड़े मंदिर और मजारें नजर आईं, धर्मस्थलो के आसपास खूब अतिक्रमण दिखे. लाउड स्पीकर से अजान और भजन के कानफोड़ू पाठ सुनाई पड़े. सांप्रदायिकता मिली सरे आम बेशर्मी से बुर्के को तार तार करती मिली, कट्टरता ठहाके मारती मिली, रूढ़िवादिता भी मिली, कम्युनलिज्म टकराया किन्तु मेरी संवैधानिक धर्मनिरपेक्षता की तलाश अब तक अधूरी ही है. आपको धर्मनिरपेक्षता समझ आ जाये तो प्लीज मुझे भी समझा दीजीयेगा जिससे मैं एक अच्छा नागरिक बनने के अपने संवैधानिक मिशन में आगे बढ़ सकूं.
© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
मो ७०००३७५७९८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈