श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 126 ☆
☆ आलेख – नाम की महत्ता ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆
सुमिरी पवन सुत पावन नामू।
अपने बस करि राखे रामू।।
(रा० च०मानस०)
गोस्वामी तुलसी दास जी लिखते है कि- नाम स्मरण करते करते हनुमान जी ने भगवान राम को भी अपने बस में कर लिया था और उनके प्रिय अनुचर बन बैठे थे। वहीं पर राम चरित मानस में नाम की महिमा बताते हुए कहते हैं कि –
कलियुग केवल नाम अधारा।
सुमिरि सुमिरि नर उतरहि पारा।।
के अलावा भी बहुत कुछ लिखा गया है यूँ तो नाम व्याकरण के अनुसार एक संज्ञा है जिसके बारे में
हिंदी भाषा व्याकरण में पारिभाषित किया गया है कि – किसी वस्तु व्यक्ति अथवा स्थान के नाम को संज्ञा कहते हैं।
जिससे हमें उसकी आकृति, प्रकृति, गुण, स्वभाव तथा प्रभाव का बोध होता है। नाम से ही सबकी पहचान है, यहाँ तक कि सृष्टि के समस्त प्राणी देव दानव सुर असुर किन्नर गंधर्व मानव सभी अपनी पहचान के लिए नाम के ही मोहताज है, यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि सारी शक्तियों की सिद्धि में नाम जप ही मूल है। हजारों की भीड़ में पुकारा गया नाम आप आपको भीड़ से अलग कर देता है।
नाम में शक्ति है, नाम में भक्ति है, नाम में ही सार छुपा है, नाम में ही मारण मोहन वशीकरण सब कुछ समाया हुआ है इसकी महिमा अनंत है तभी तो नाम की महिमा से प्रभावित तुलसी दास जी लिखते है कि-
राम न सकहि नाम गुण गाई।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि नाम की महिमा अगम अगोचर अनंत है।
© सूबेदार पांडेय “आत्मानंद”
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