हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कविता # 141 ☆ रिकवरी और ‘गुड़ -गुलगुले’ ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी  की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है आपका एक अविस्मरणीय एवं विचारणीय संस्मरण रिकवरी और ‘गुड़ -गुलगुले’”।)  

☆ संस्मरण  # 141 ☆ रिकवरी और ‘गुड़ -गुलगुले’ ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

प्रमोशन होकर जब रुरल असाइनमेंट के लिए एक गांव की शाखा में पोस्टिंग हुई,तो ज्वाइन करते ही रीजनल मैनेजर ने रिकवरी का टारगेट दे दिया, फरमान जारी हुआ कि आपकी शाखा एनपीए में टाप कर रही है और पिछले कई सालों से राइटआफ खातों में एक भी रिकवरी नहीं की गई, इसलिए इस तिमाही में राइट आफ खातों एवं एनपीए खातों में रिकवरी करें अन्यथा कार्यवाही की जायेगी ।

ज्वॉइन करते ही रीजनल मैनेजर का प्रेशर, और रिकवरी टारगेट का तनाव। शाखा के राइट्सआफ खातों की लिस्ट देखने से पता चला कि शाखा के आसपास के पचासों गांव में आईआरडीपी (IRDP – Integrated Rural Development Programme – एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम) के अंतर्गत लोन में दिये गये गाय भैंसों के लोन में रिकवरी नहीं आने से यह स्थिति निर्मित हुई थी। अगले दिन हम राइट्स आफ रिकवरी की लिस्ट लेकर एक गांव पहुंचे। कोटवार के साथ चलते हुए  एक हितग्राही रास्ते में टकरा गया।  हितग्राही  गुड़ लेकर जा रहा था, कोटवार ने बताया कि इनको आपके बैंक से दो गाय दी गईं थी। हमने लिस्ट में उनका नाम खोजा और उनसे रिक्वेस्ट की आज किसी भी हालत में आपको लोन का थोड़ा बहुत पैसा जमा करना होगा।

….हम लोग वसूली  के लिए दर बदर चिलचिलाती धूप  में भटक रहे है और आप गुड -गुलगुले खा रहा है ….बूढा बोला …बाबूजी गाय ने  बछड़ा  जना  है गाय के लाने सेठ जी से दस रूपया मांग के 5 रु . का गुड  लाये है…. जे  5 रु. बचो  है लो जमा कर लो …..

लगा ..किसी ने जोर से तमाचा जड़ दिया हो, अचानक रीजनल मैनेजर की डांट याद आ गई, मन में तूफान उठा, रिकवरी के पहले प्रयास में पांच रुपए का अपमान नहीं होना चाहिए, पहली ‘बोहनी’ है और हमने उसके हाथ से वो पांच रुपए छुड़ा लिए …..

बूढ़े हितग्राही ने कातर निगाहों से देखा, हमें दया आ गई, कपिला गाय और बछड़े को देखने की इच्छा जाग्रत हो गई, हमने कहा – दादा हम आपके घर चलकर बछड़ा देखना चाहते हैं। कोटवार के साथ हम लोग हितग्राही के घर पहुंचे, कपिला गाय और उसके नवजात बछड़े को देखकर मन खुश हो गया, और हमने जेब से पचास रुपए निकाल कर दादा के हाथ में यह कहते हुए रख दिए कि हमारी तरफ से गाय को पचास रुपए का और गुड़ खिला देना, और हम वहां से अगले डिफाल्टर की तलाश में सरक लिए …..

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈