श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक सार्थक एवं विचारणीय रचना  “कोशिशों की कशिश”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन।

आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 105 ☆

☆ कोशिशों की कशिश ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’  

संवेदना की वेदना को सहकर सफ़लता का शीर्ष तो मिलता है पर सुकून चला जाता है  लेकिन फिर भी हम दौड़े  जा रहे हैं एक ऐसे पथ पर जहाँ के आदि अंत का पता नहीं। अपनी फोटो को अखबारों में देखकर जो सुकून मिलता है क्या उसे किसी पैरामीटर में नापा जा सकता है। अखबारों की कटिंग इकठ्ठा करते हुए पूरी उम्र बीत गयी किन्तु आज तक मोटिवेशनल कॉलम लिखने को नहीं मिला  और मिलेगा भी नहीं क्योंकि जब तक विजेता का टैग आपके पास नहीं होगा तब तक कोई पाठक वर्ग आपको भाव नहीं देगा।

माना अच्छा लिखना और पढ़ना जरूरी होता किन्तु प्रचार- प्रसार की भी अपनी उपयोगिता होती है। कड़वा बोलकर जो आपकी उन्नति का मार्ग बनाता  वो सच्चा गुरु होता है, बिना दक्षिणा लिए आपको जीवन का पाठ पढ़ा देते हैं। ऐसे कर्मयोगी समय- समय पर राह में शूल  की तरह चुभते हैं  , ये आप पर है कि आप उसे फूल के रक्षक के रूप में देखते हैं या काँटे की चुभन को ज्यादा प्राथमिकता देकर विकास का मार्ग अवरुद्ध कर लेते हैं।

बातों ही बातों में रवि , कवि,  अनुभवी से भी बलवान मतलबी निकला  जो अपने स्वार्थ पूर्ति हेतु कुछ भी कर सकता है,  कुछ भी सह सकता है  पर सफलता का स्वाद नहीं भूल सकता।

बहुत ही  सच्ची और अच्छी बात जिसने भी ये लिखा अवश्य ही वो ज्ञानी विज्ञानी है। ध्यान से चिन्तन करें तो पायेंगे कि जैसी हमारी मनोदशा होती है वैसे ही शब्दों के भाव हमें दिखने लगते हैं यदि मन प्रसन्न है तो सामने वाला जो भी बोलेगा हमें मीठा ही लगेगा किन्तु यदि मन अप्रसन्न है तो सीधी बात भी उल्टी लगती है और बात का बतंगड़ बन झगड़ा शुरू हो  जाता है।मजे की बात जब जेब में पैसे की गर्मी हो तो वाणी अंगारे उगलने से नहीं चूकती है। बस सारी हकीकत सामने आते हुए समझौते को नकार कर केवल अपने सिक्के को चलाने का जुनून सिर पर सवार हो जाता है। लगातार कार्य करते रहें तो अवश्य ही मील का पत्थर बना जा सकता है। केवल थोड़े दिनों की चमक में गुम होने से आशानुरूप परिणाम नहीं मिलते। जो भी करें करते रहें। जब समाज के हितों की बात होगी तो राह और राही दोनों मिलने लगेंगे। बस सबको साथ लेकर आगे चलें, लीडर का गुण आगे बढ़ते हुए सारी जिम्मेदारी को अपने ऊपर लेकर महत्वपूर्ण निर्णयों पर एक सुर से आवाज उठाना होता है।

अंततः यही कहा जा सकता है कि धैर्य रखें, हमेशा सकारात्मक चिन्तन करें। सफ़लता स्थायी नहीं होती अतः कर्म करते रहें  और  तन मन धन से समर्पित हो  सबके  मार्ग को सहज बनावे। आप कर्ता नहीं हैं केवल कर्मयोगी हैं कर्ता मानने की भूल ही आपको अवसाद के  मार्ग तक पहुँचा देने में सक्षम है।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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