श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत हैं   “संतोष के दोहे… । आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 126 ☆

☆ संतोष के दोहे ☆ श्री संतोष नेमा ☆

एक रँग एक रूप हैं, पर हैं नाम अनेक

इश्क़, मुहब्बत, प्यार, वफ़ा, लगे प्रेम पर नेक

 

बहता दरिया प्रेम का, जिसका ओर न छोर

शीतल करता दिल वही, किये बिना कुछ शोर

 

चढ़िए मंज़िल इश्क़ की, पहली सीढ़ी नैन

कदम कभी रुकते नहीं, कभी न आता  चैन

 

व्हाट्सऐप पर कहें, अपने दिल की बात

फेसबुक पर दिखा रहे, झूठे सब जज्बात

 

दिखतीं इंस्टाग्राम पर, मन मोहक तसवीर

कितनी सच्ची-झूठ हैं, खींचें कौन लकीर

 

जाने कैसे पनपता, यह मायाबी प्यार

आया सोशल मीडिया, ले कर नव उपहार

 

लिवरिलेशन प्यार बढ़ा, रहा न नीति विचार

मात-पिता दर्शक बने, खूब हुए लाचार

 

बदल गए अब मायने, प्यार हुआ बदनाम

मर्यादाएं भंग हुईं, करते खोटे काम

 

मुख से जो बोले नहीं, करे नैन से बात

समझें बस प्रेमी सभी, कहे बिना जज्बात

 

सच्चे प्रेमी यूँ रहें, जैसे जल में मीन

बिछुरत ही तडफें सदा, प्राण गए ज्यूँ छीन

 

प्रेमी ऐसे मिल रहे, जैसे हल्दी चून

इक दूजे में खो गए, ख़ुशियाँ होती दून

 

मीठा लगता शहद सा, पहला पहला प्यार

खुशी मिले “संतोष” सँग, हर्षित हों सब यार

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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हेमन्त तारे

मजेदार।